✍️✍️कविता✍️✍️
लोग पूछते होली कब है ?
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हर पल दुनियां रंग बदलती,
गिरगिट सा रंग लेकर चलती।
भितरघात धोखे के रंग से,
चाल करे क्रीड़ा क्रंदन है।
लोग पूछते होली कब है ?
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प्रेम दिखावे का है बाकी,
कुत्सित काला ह्रदय लेकर।
दर्द,वेदना,धोखा देकर,
गोरा चेहरा रंग छुपाता।
दुनिया जाने तेरा सब है,
लोग पूछते होली कब है ?
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धोखा,चुगली रंग ले रही,
काला पीला खेल कर रही।
चाल छद्म से दूषित चेहरा,
मुख पर काले रंग का पहरा।
बातों में नकली रंग ठहरा,
ये दुनिया भी अजब गजब है।
लोग पूछते होली कब है ?
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सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
२१.०३.२०२१
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