------
मैं तो बस यूं ही बेबाक अंदाज में किताब
लिखना चाहता हूँ,
गुलामी मौकापरस्ती के दौर में इंकलाब
लिखना चाहता हूँ,
------
सियासीजमात आज शायद उस दोराहे
पर खड़ी है,
लगता है कुर्सी सियासत के उसूलों से
बड़ी है,
------
अब उसूलों कायदों और बायदों की बात
कौन करे,
जब रहनुमा ही चेहरा अपना खुद दाग
दार करे,
-------
सियासी सरपरस्ती में बहुत से दागदार
चेहरे बैठे हैं,
ये किसकी सह में रहनुमाई में असरदार
बने बैठे हैं,
-------
तेरी आबाज दब क्यों गयी है आंखें क्यों
डर रही हैं,
ये हरकत ये नजीर सियासत को दागदर
कर रही हैं,
------
जो नुमाइंदगी करने को चुने थे मासूम
अवाम ने,
वे अब गलत को गलत कहने में खौफ
खाते हैं,
---------
बड़ी शिद्दत से गिरेबाँ में झांकते है औरों
के रहनुमा,
खुद के दाग से सने गिरेबाँ पर नजर गौर
कौन करे,
---------
तेरी तकरीरें तेरी जुबान सियासी उसूल
सब फाख्ता है,
आवाम नफा नुकसान खरीद फरोख्त
का ध्यान रखती है,
--------
रहनुमा क्या मान लिया तुझे "बेसऊर"
रहनुमा,
तू तो अब हमही से आंखें तरेर कर बात
करता है,
--------
हिमायत करने की एक आदत सी बन
रही है मौजूदा दौर,
ये सियासत के उसूलों के खिलाफ
खुली चिंगारी है,
---------
जम्हूरियत की ताकत को उखाड़ना
चाहते हो,
तुम क्या फिर कोई गुल खिलाना
चाहते हो,
---------
तकरीर वस तकरीर और बड़ी बड़ी तकरीर,
उसूल टूट गए सियासतके बात बड़ी गम्भीर,
--------
ओहदा की हनक क्या जमाने भर सँभाले रहोगे,
अवाम जब तुम्हे अब्तर समझेगी तब क्या कहोगे,
--------
आइंदा अब आस तुमसे नहीं होगी सुनो
सियासतदान,
सियासी उसूल बिक रहे हैं क्यों जानना
चाहता है हिंदुस्तान,
-------
हर हिन्दोस्तानी की जमीन है ये खून से सींचा
है पुरखों ने,
सभी की बुलन्द आबाज गूंजेगी यहाँ पूरे हक
और सम्मान से,
--------
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१६.१२.२०२१ ११.५९ रा.
---------