कहानी(दो गिलास दूध)

  

कहानी

।दो गिलास दूध।            

       सुनयना शहर की पढ़ी लिखी कोई २४ वर्ष की युवती थी,परास्नातक हिंदी माध्यम से पूर्ण कर लिया था,पिता रामाधर नेनप्रिय एक निर्भीक स्वाभिमानी पत्रकार थे। उनका शरीर सुगठित एव बलिष्ठता से भरपूर था देखने मे कद काठी से भद्र पुरुष लगते थे धर्मकर्म में अनुराग होने के कारण लोग उन्हें पण्डित जी कहा करते थे वे प्रतिदिन रामचरितमानस का वाचन करते और शिव आराधना करते ये उनकी जीवनशैली का अभिन्न अंग था।

   सुनयना की माँ श्यामला धर्मपरायण विदुषी गृहिणी थी वे ह्रदय से सरल लेकिन अनुशासित सख्त और दयालु महिला थीं माँ बाप ने अपनी एकमात्र सन्तान सुनयना को बड़े दुलार स्नेह से पाला पोसा था एव उसे भरपूर चारित्रिक मान एव आत्मसम्मान की सीख दी थी उन्होंने सुनयना को भरपूर सीख दी थी कि वर्तमान समाज में फैल रहे विभिन्न दुश्चक्रों षणयंत्र के पाशों से कैसे बचा जाए एव अपने लक्ष्य को कैसे भेदा जाए सुनयना भी मातापिता के द्वारा दिए हुए ज्ञान को सदा याद रखती एवं सजग रहती।

   पिता ने उसे किसी भी विपरीत परिस्थित से मुकाबला करने का हुनर दिया था उन्होंने उसे शारीरिक प्रतिरक्षा प्रणाली का प्रशिक्षण भी कराया था पिता जी के साथ वह बचपन से ही रोज दौड़ लगाने जाती।  उसका शरीर भी गठीला एव बलसम्पन्न था पिता अपने साथ दौड़ लगाते समय शर्त रखते कि जो आज हम दोनों में से आगे निकल जायेगा उसे जारी(मलाई)वाला दो गिलाश दूध मिलेगा एव भरपूर मेवा पाग, इसके पीछे पिता का पुत्री के प्रति अगाध स्नेह झलकता था साथ ही उसके शरीर को बलिष्ट बनाने का लोभ,वह जानते थे आगे के समय वातावरण में लड़कियों को अपने बल पर खड़े होने के लिए शारीरिक एव मानसिक बल का पूर्ण होना अति आवश्यक है।

        वे सदैव पुत्री से दौड़ में जानबूझकर हार जाते लेकिन सुनयना को कभी आभास न हो पाता कि पिता सचमुच हार गए या मुझे जिताने के लिए परास्त पद ले लिए है,यही एक मात्र सर्वश्रेष्ठ आनन्दमयी क्षण होता है प्रत्येक पिता के लिए जब पिता अपनी संतान हेतु खुद के सामर्थ्य को कमतर और सन्तान को श्रेष्ठ करने में रत रहता है यही वह हार है जिसके हारने में विजय का उन्माद दम्भ झलकता है सच में यही वास्तविक जीत है।

    सुनयना जान ही नही पाती कि पिता नकली पराजय प्राप्त करते हैं और जब सुनयना विजयी होती तो फिर उसे जीत के उपलक्ष्य में दो गिलाश दूध/मेवा/घी का मिश्रण पीना पड़ता, पिता मन ही मन प्रसन्न होते,मेरा उद्देश्य सफल हो रहा है। बहुत सुंदर प्रयोग, वैसे सुनयना दूध पीते समय नाक मुंह सिकोड़ती थी लेकिन अब पारितोषिक के रूप में दुग्ध पान कर तो लेती है इसमें हमारा भी स्वार्थ पूरा और इसका शरीर भी वलिष्ठ, पिता सदा से ही पुत्री को भरपूर स्नेह देते माँ डांटती रहती तुम इसे बिगाड़ के मानोगे,तब उनका जबाव होता तुम्हे भी तो सुधार दिया तुम कौनसी मलूक थी ये सुनते ही श्यामला जलभुन जाती और फिर चलता रूठने मनाने का सिलसिला,पिता अपनी बेटी को आत्मरक्षा के प्रशिक्षण हेतु साथ ले जाते एव अपने शानदार सम्पादकीय लेखों से उसको दुनिया जहां से परिचय कराते राजनैतिक,समसामयिकी,अपराध,खेल जगत से रूबरू कराते एव जागरूक 

करते रहते।                    

अभी भी सुनयना अपने पिता के कक्ष में ही सोती,बतियाती और पिता के अनुभव समाज,देशकाल,वातावरण के सुनती,अब

समय करबट ले रहा था,पिता का स्वास्थ्य कमजोर

होने की कगार पर था,माँ की आंखों में चश्मा चढ़ गया,रामाधर नेनप्रिय जी के लेख आज कल अखबारों,पत्रिकाओं में कम ही छपते थे,क्योकि वहाँ भी प्रतिस्पर्धा भरा भर थी क्योकि नए लेखक चाटूकारिता एव निज स्वार्थ के आडम्बर से ग्रसित जान पड़ते थे,ऐसा प्रतीत होता था कि आधुनिक दौर की कलम परतंत्रता की बेड़ियों में समाती जा रही हो बड़े बड़े मीडिया हाउस रटेरटाये वाक्यों को दोहराते दिखते,महिमामंडन का दौर जारी प्रतीत होता मानो विज्ञापन पाने हेतु नई तरकीब ईजाद हुई हो,कुछ निर्भीक,स्वतन्त्र,लेखक,पत्रकार अपनी कलम की धार से समाज को सत्य और सत्य दिखाने में कार्यरत थे,कुछेक अखबार/मीडिया जगत का एक मात्र उद्देश्य सरकारी विज्ञापनों को हथियाना रह गया प्रतीत होता था।ऐसी भागमभाग स्वर्थरतता की दुनिया मे नैनप्रिय जैसे स्पष्टवादी पत्रकार की कलम शांति होती जा रही थी। सरकारी वरदहस्त से कई कई अयोग्य पत्रकार लेखक कवि सफलता के शिखर पर चढ़ते चले जा रहे थे नेनप्रिय जी एक स्वाभिमानी एव निर्भीक लेखक थे उनकी कलम जब भी बोलती स्पष्ठ सटीक और जनता की आह डाह कराह कालक्रम की वेदनाओं को जोरदार रूप से प्रस्तुति करती लेकिन सच बोलना लिखना और जनता के समक्ष रखना शायद अब पुराने दौर की बात हो गयी प्रतीत होती जा रही थी। अब उन्हें बहुत कम काम मिलता परिवार का गुजारा भी ठीक ठाक नहीं हो पा रहा था।

       एक दिन सुनयना अपने माँ पिताजी से बोली,अब मुझे कोई नौकरी देखनी होगी पिता बोले क्यों बेटा सुनयना,सुनयना बोली पिताजी अब आपकी आय आधी से कम रह गयी है साथ ही आपका स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा,अब मुझे आपका सहारा बनना ही चाहिए,इसलिए मुझे अब आना ही होगा मैदान में,कुछ देर शांत रहे नेनप्रिय जी,कुछ देर तक एक सन्नाटा सा छा गया,फिर,पिताजी ने पूछा क्या करना चाहते हो,सुनयना ने कहा वही जो आप करते आये हैं लेकिन अब इसमें प्रतिस्पर्धा अधिक है साथ ही चाटुकारों की भरमार सी हो गयी है पत्रकारिता अब धर्म कम व्यवसाय ज्यादा होती जा रही है नेनप्रिय जी बोले,सुनयना बोली पिताजी जिसमें संघर्ष और प्रतियोगिता न हो तो वह सफलता शक्तिशाली एव स्थिर नहीं होती इसका समर्थन बगल में बैठे युवा लेखक शिव शंकर झा "शिव" ने भी किया,उनका अलग ही अंदाज था बोले बिना संघर्ष के मिली सफलता ज्यादा दिन नहीं ठहरती,साथ ही बोले वह विजय रथ ही क्या जिसकी हुंकार पहियों की आबाज से शत्रुदल भयाक्रांत कम्पित न हो जाये,वह सफलता ही क्या जिसमें त्याग संघर्ष वलिदान और समय की मार का धारदार अनुभव न हो, 

     शिव-सुनयना से बोले बेटा मेरा सहयोग आपको मिलता रहेगा,आप लेखन में अपना कार्य प्रारंभ करें,पिता ने कहा ठीक है तुम भी इसका साथ दे रहे हो प्रिय शिव,

चलो मैं बात करता हूँ उन्होंने अपने किसी वरिष्ठ सम्पादक श्रीगोविंद गौड़ीय जी से फोन पर बात करके उसे सह सम्पादक के पद पर एक प्रमुख दैनिक अखबार में काम दिलवा दिया,कलम की धार अपनी हुंकार भरने लगी,क्योकि सुयोग्य सन्तान में ज्ञान पिता के द्वारा विरासत में मिला होता ही है अब सुनयना का प्रभाव दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा अधिकांश समाज और सहकर्मियों को सहसा ज्यादा बढ़ने वाला व्यक्ति रास नहीं आता उन्हें भय सताता है कि कहीं ये नया नया साथी मुझसे आगे 

ना निकल जाए और मेरी सफलता के मार्ग अबरुद्ध न हो जाएं।

    लेकिन अब सुनयना पलटने वाली न 

थी कलम अपना कार्य पूरे आत्मबल के साथ कर रही थी नित नए नए विस्फोटक लेख छप रहे थे राजनीतिक गलियारों में एक अलग ही माहौल था,सुनयना की नजर महिला अत्याचार,वालिकाओं के शोषण, सामाजिक शोषण,अपराध पर अधिक थी उसे जैसे ही खबर लगती फलां बेटी/महिला का साथ अन्याय,अत्याचार हुआ है फिर क्या था उसकी कलम अधिक धारदार होकर लिखती एक दमदार लेख और निकल पड़ती उसे न्याय दिलाने हेतु अब चारो तरफ उसके लेख सराहे और पढ़े 

जाने लगे।

  उसके लेख समाज में नित नूतन  जाग्रति/जागरण/जागरूकता का काम कर रहे थे वह अपने लेखों से अत्याचारी को दंड दिलवा कर ही मानती ये उसकी कार्यशैली थी,अब वह राजनीतिक लेख एव अपराध लेख की नई बुलंदियों पर थी उसी दौरान शहर में एक बड़े प्रभावशाली व्यक्ति सत्तादल के मंत्री खड़गा सिंह खड्ग के बिगड़ैल एकमात्र बेटे दुर्जनसिंह ने एक गरीब वालिका के साथ दुराचरण कर दिया घटना इतनी ह्रदय विदारक थी और एक सभ्य समाज पर काला कलंक प्रश्नचिन्ह भी,दुर्जन ने ये अत्यंत पाशविक,पैशाचिक कृत्य अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर किया खबर जंगल मे आग की तरह फैल गयी लेकिन किसी के मुंह से चूं तक नही निकल रही थी कुछेक अखबारों ने अपना धर्म निभाया और खबर प्रकाशित की लेकिन एक दो दिन के बाद खबर दबती चली गयी,सुनयना ने इसी समय का लाभ उठाया और खबर को फिर जबरदस्त उत्साह के साथ प्रकाशित कराया मंत्री की पकड़ ऊपर तक थी और भरपूर दम्भ भी धन की कोई कमी नहीं और नाहीं चाटूकारिता से लिप्त जयघोष करने वालों की, लठैत,बंदूकधारी,अपराध जगत के सिरमौर उसके यहां हाजिरी लगाते सरकारी अमला उसकी आवभगत करता ज़रा सोचिए ऐसा जननेता समाज के बीच हो तब क्या उम्मीद की जा सकती है कि गॉव गरीब किसान को न्याय मिल पायेगा खैर ये बाद की बात है।

       माननीय मंत्री खड़गा सिंह "खड्ग" का भय समाज मे व्याप्त था सत्ता के मद में चूर कुछ स्वार्थी तत्व कब गरीब की बेटी को अपना समझते हैं और कब गरीब असहाय के दर्द को दर्द,साथ ही उस समय कानून भी अपना कार्य पूरी निष्ठा से न कर पा रहा था क्योंकि अधिकांश प्रशासनिक पद भी राजनैतिक गलियारे से होकर ही गुजरते हैं विभागों के मुखियाओं की सूची सत्तासीन दल के टेबल से ही होकर गुजरती है उनकी मोहर की कृपा जिस पर बरसती है पद उसे मिल जाता है कभी कभी वरिष्ठता क्रम को धता बताते हुये भी! सब राजनीतिक वरदहस्त का कमाल है!

    कमजोर व्यक्ति की आबाज पहले ही दमदार नहीं होती और थाने चौकियों पर जाते जाते और भी खामोश हो जाती है! थाने का दरबान भी उनके लिए किसी सरकार से कम नहीं होता उनकी तो रिपोर्ट भी बमुश्किल थाने चौकियों में लिखी जाती है और अगर लिख भी गयी तो धाराओं का खेल किसी से छिपा नहीं है।

        उस गरीब की बेटी की पैरबी कौन करेगा कौन न्याय दिलाएगा क्या वह सिसक सिसक कर मर जाएगी क्या वह अपना मस्तिष्क ऊंचा कर गर्व से चल पाएगी. इस तरह के अनेकानेक भाव सुनयना के मन को कचोट रहे थे खबर शहर में आग की भांति फैल चुकी थी इसी खबर को आधार बनाते हुए निर्भीक लेखक सम्पादक सुनयना की कलम ने धारदार लेख छापा मानों इस लेख ने आग में घी का काम कर दिया जनता जाग गयी आंदोलन होने लगे और सरकारी कार्यालयों के घेराव ज्ञापन और बहुत कुछ विपक्षियों के बारे न्यारे हो रहे थे,धरना आंदोलन और जननेताओं की भाग दौड़ और भाषण।   

       खड़गा सिंह खड्ग को ये खबर लगी कि फलां सम्पादक ने ये लेख छापा है जिसके आधार पर मेरे बेटे को आजीवन कैद और फांसी हो सकती है सुबह सुबह लावलश्कर के साथ आठ दस गनर और लठैतों के साथ सुनयना के घर पहुँच गया मंत्री खड़गा सिंह,उस समय रामाधर जी अखबार पढ़ रहे थे सुबह का वक्त था,

तभी हांफता हुआ भूलाराम आया, भूलाराम सुनयना का द्वार रक्षक था हांफता हुआ बोला बाबू जी बाबू जी नैनप्रिय बोले बोल भाई भूलाराम क्या हुआ हॉफनी को सामान्य करते हुए बोला भूलाराम बाबूजी बाहर खड़गा सिंह खड्ग अपने लोगों के साथ आये हैं बोल रहे हैं सुनयना का यहीं घर है नैनप्रिय जी अपनी ऐनक सम्भालते हुए उठे और बेंत को हाथ में लेकर दरबाजे की तरफ आये,सामने खड़गा सिंह खडग खड़े थे 

बोलो भाई किस काम से आना हुआ नैनप्रिय ने कहा

खड़गा सिंह के बोलने से पहले उनका सिपहसालार झगलीसिंह पगलैट बोला बुड्ढे अपनी छोकरियां को बुला,झगलीसिंह पगलैट खड़गा सिंह का खास सिपहसालार था नैनप्रिय जी बोले क्यो क्या बात हो गयी खड़गा सिंह बोला बुला बुड्ढे अपनी निर्भीक लेखक छोकरी को बडी गरीबों की हमदर्द बनने चली है। बुला जल्दी उसे या उठा लाए हमारे लड़के अंदर से जबरन,नैनप्रिय जी आग बबूला होकर बोले क्या बकते हो,जरा भी कदम आगे बढ़ाया तो तोड़ के रख दूंगा,गनर फूला सिंह अपनी बट दिखाते हुए बोला,एक पड़ गयी तो गगन चूम लेगा बुड्ढे अंदर सुनयना आफिस जाने की तैयारी कर रही थी माँ श्यामला भागती भागती आयी बेटा तू बाहर मत निकलना,बाहर कुछ अराजक तत्व आये हैं सुनयना बोली माँ तू मुझे बाहर जाने से रोक रही है जबकि बाबूजी बाहर जालिमों के समक्ष शिखर सदृश खड़े हुए है,बाहर से अब जोर जोर से आबाजे आ रही थी,सुनयना भागती हुई बाहर आई कौन है,खड़गा सिंह की भौहें तन गयी आगया मेरा शिकार,ले चलो इसको हमारे साथ वही उपचार करेगें,इतना सुनते ही सुनयना ने आव न देखा ताव जड़ दिया तमाचा सिपहसालार के गाल पर जैसे ही झगलीसिंह बलपूर्वक उसकी कलाई पकड़ने को उद्दत हुआ,गनर फूलासिंह भी आक्रामक तेवर में था सुनयना बलपूर्वक धकियाती हुई आगे बडी और खड़गा सिंह को रौंद दिया अपनी कड़क भुजाओं से वह भीड़ को चीरती हुए आगे भागने लगी,

    इसके पीछे उसका मकसद अपने द्वार से इन दुर्जनों को दूर ले जाना था,सभी छुटभैये भी पीछे पीछे भागने लगे नैनप्रिय भाग न सके और गिर गए,मां गस खाकर निढाल होगयी,सुनयना अपनी मजबूत बाजुओं की आज परख करना चाहती थी,उसे ज्ञात था उसने जो शक्ति ज्ञान मेधा अर्जित की है वह ईमानदार पिता की कमाई का प्रतिरूप है।आज वह दो गिलास दूध की ताकत परखना चाह रही थी क्या बेटियां बलवान नहीं होती आज वह यह सिद्ध करना चाहती थी वह आगे बढ़ी जा रही थी,आत्मरक्षा प्रणाली एव बल का अहसास कराती हुई,एक एक कर सभी सिपहसालारों को धूल चटा रही थी,आज उसे पिता के साथ दौड़ने की ताकत और दो गिलास दूध साथ ही आत्मरक्षा का हुनर काम दे रहा था।

      वह सभी को धूल चटाती हुए पुलिस थाने में दाखिल हुई,आज वह खड़गा सिंह को परास्त कर चुकी थी उसकी शक्ति और छुटभैयों के सेना को अपनी बाजुओ का भार वजन दिखा चुकी थी,उसका थाने में परिचित चेहरा होने के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो गयी,सिपहसालार जेल गए और खड़गासिंह खड्ग पर गम्भीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ कानून ने अपना कार्य किया कालांतर में उन्हें भी जेल जाना ही पड़ा और दुर्जन सिंह को कठोरतम सजा आजीवन कारावास और सजा ए मौत का अदालती आदेश जारी हुआ गरीब की बेटी को न्याय मिल गया।

शिव शंकर झा"शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

३१.०१.२०२१ ०९.१९ सु.

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