व्यंग्य
।।नेताजी जिंदाबाद।।
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वक्त वक्त और चाल काल को देख
बदल दे रंग,
जिसकी काली करतूतों से जनता
होती दंग।।
दल बदलें ये अपनी खातिर एक
साल में चार,
एक साल में चार करें निज दल से
नित गद्दारी।।
भारी जो मौकापरस्त वह श्रेष्ठ नेता
गुणधारी..
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गुरू को खूब छकाय करै गुरु संग
भी धोखा,
जानैं जाकूँ पालौ पोसौ ताही कौ
मारग रोका।।
मौका परत सियासी गुरू को भर
भर धूल चटावै,
मौका पड़ै ना जो नर चूकै नेता
वही कहावै।।
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नेता वही कहाय दगा धोखा गुण
धारी,
साम दाम और दंड भेद का तमगा
धारी।।
मौका पड़े पर पाली बदले तुरत
दगा कर जावै,
पीठ दिखावै वादा करे ना कबहू
निभावै।।
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तुरत दगा कर जाए घुसे दुश्मन
दल जाई,
कल इस दल संग कहत रहे हम हैं
भाई भाई,
आज विरोधी दल के अंदर करता
खूब बुराई,
ना बात,साथ,ना मित्र प्रेम इनमें कछु
देय दिखाई,
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जातिपाँति का खेल रचावै जनता को
ये नित भरमावै,
पाँच वर्ष तक दुबक गुफा में पांच साल
में वापिस आवैं,
नियम नदारद वादे नदारद सगा ना
कोई भाई,
विज्ञ पुरुष नेता महान के होतें हैं ये
गुण भाई,
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सगा मित्र कोई नाहिं दगा पार्टी संग
करता,
पार्टी जाए भाड़ खड्ड में नेता जेबें
भरता,
जिसकी वाणी का अब ना रहा कोई
विश्वास
वही बड़ेले नेता बन के खूब करे भारी
अट्टहास,
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खूब करें अट्टहास प्रजा को वह नित नित भरमाबैं,
चाल,छद्म और भेष बदल फिर फिर वह आवैं,
सुबह शाम और रोज रोज जो झूठा ज्ञान दिखावै,
वह महानपुरुष नर ज्ञानी सर्वमान्य नेता कहलावै,
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राजनीति के विज्ञ पुरुष तुझको मेरा
प्रणाम,
जनता भूल गयी करतूतें तेरे सारे
काम,
पॉच वर्ष में चार वर्ष तक काम ना
कीना,
अंतिम रह गए माह काम का ठेका
दीना
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नेता के गुण गान कलम में नहीं
समावै,
नित नूतन व्यवहार अमल में नेता
लावैं,
नित नूतन व्यवहार करें ये मन
मानी,
जनता ठहरी सरल हुआ नेता बड़
ग्यानी,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२१.१२.२०२१ ०१.१८ दो.
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