शेर(..सबक जिंदगी..)

       

(सबक जिंदगी)

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मशालें जल रहीं है पर उजाला खामोश है,

आखिर ये कौनसा दौर है आदमी उदास है,

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महल की आस लेकर चलते हैं सभी यारो,

मगर नसीब का फरमान भी कोई चीज है,

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दौलत का नशा उसका काफूर हो गया तब,

जब औलाद ने दरबदर कर दिया बुढ़ापे में,

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अमीरी का गुमान लिए चलता रहा उम्र भर,

जब हड्डियों ने बगाबत की तब होश आया,

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नफरत खूब बेशक रहे दिल में तेरे,

सबक सराफत का भूलना ठीक नहीं, 

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उसे गुरूर था अपनी सल्तनत और दौलत का

बहुत यारो,

शरीर,औलाद दोनों ने सरेराह छोड़ दिया तब

होश आया,

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तेरी खुशामद और हाँ हजूरी बहुत दिन नहीं

हनी,

तौहीन का स्याह सन्नाटेदार माहौल भी तेरा

बाकी है,

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जमीदार,जागीरदार, रियासतदार रुखसत हुए

जब,

तब उन्हें बस जमीन का अदद टुकड़ा ही नसीब हुआ,

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हुजूम बेशक लगा हो तेरे इर्दगिर्द भरपूर

सुबह शाम,

बुरे वक्त गर लोग काम आएं नहीं तो 

तौबा ठीक है,

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मुझे शिकवां और गिलां किसी से नहीं

मौजूदा दौर,

सबक जो पढ़ा मैनें उस्ताद से उसी पर

कायम हूँ,

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तुम्हें ज्यादा और ज्यादा ना मिल सकेगा

सुनो यारो,

आदमी सिर्फ अपने सफर पर हैं मंजिल

पता नहीं,

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हर तरफ हर ओर लोग चिल्ला के भाग 

रहे हैं,

कुछ सो गए गुमान में सराबोर कुछ जाग

रहे हैं,

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समय की उल्टी चाल और हरकत देखकर

सहम मत जाना,

ये पूरी जिंदगी जंग से कमतर नहीं मेरे

हमसाये दोस्त,

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मेहरबानी और खैरात अहम से सराबोर से

नहीं लेना,

मौत मंजूर हो लेकिन सिर ना झुका देना

कभी,

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क़िस्त सी काट दी अगर ये खूबसूरत जिंदगानी

तूने,

तो तू क्यों जमीं पर आया जबाव क्या है कोई तेरे पास,

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जिंदगी यूँ ही सिसक सिसक के मरती रही

ताउम्र,

ख्वाब पूरा ना हो सका शान से जीने का

यारो,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२२.१२.२०२१ ०५.२१ भोर

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