कहानी(मंत्र शक्ति)

कहानी
(मंत्र शक्ति) 

ज्येष्ठ मास का अवसान काल निकट ही था गर्मी की हनक अभी भी कम नहीं हुई थी लोग गर्मी की मार से बेहाल हुए जा रहे थे। काल का आदेश ठुकराने की सामर्थ्य उनमें न थी,जेठ मास को अपनी आयु पूर्ण करते हुए विदा लेना ही पड़ा,अब आगमन हुआ आषाढ़ मास का,ये मास बहुधा वर्षाकाल का प्रारम्भ काल कहा जाता है।

     लेकिन आषाढ़ मास की गर्मी उमस को समेटे हुए रहती है और ज्यादा असहय होती है लोग लुगाई कहते सुने जाते इससे बढ़िया तो जेठ मास की गर्मी थी उमस से कोसों दूर,मनुष्य की विशेष आदत है उसे हमेशा गया हुआ मौसम अच्छा लगता है। सर्दी आये तो गर्मी अच्छी गर्मी आये तो बरसात अच्छी आदि आदि, भगवान भी इसकी इच्छापूर्ति करते करते करते परेशान हो जाते होगें,आषाढ़ मास के शेशवाकाल में उमस वाली गर्मी तब पड़ती है जब वर्षा होने के तदुपरांत भगवान भास्कर अपनी किरणों के साथ देदीप्यमान होते है तब वह गर्मी असहनीय और उमस घुटन से भरी हुई होती है।

   यही वह समय होता है जब थलचर जीव विशेषकर सरीसृप सांप,बिच्छू आदि आदि जहरीले किस्म के जीव अपने विलों से बाहर निकल आते है सुरक्षित आश्रय हेतु वे सूखे स्थानों जैसे कि घरों,खलिहानों,कूपों आदि में शरण लेते हैं वर्षाकाल में उनके आश्रय स्थलों में पानी भर जाता है साथ ही उमस भरी गर्मी को उनकी त्वचा सहन नहीं कर पाती वह भी अपने आपको एक सुरक्षित स्थान में ले जाना चाहते हैं ताकि सुकून से रह सकें,लेकिन उनका ये सुकून मानवीय जीवन के लिए नए नए खतरे ले आता है।

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     गिरीसिंह पशुओं के लिए चारा कूटने के लिए चरी(ज्वार) के कटे हुए सूखे गट्ठरों को लेने के लिए छप्पर में पहुचा उसने देखा कुछ बोझ पानी पड़ने के कारण भीग गए हैं और उनमें दुर्गंध आ रही है अब ये कुछ गट्ठर पशुचारे के लिए उपयुक्त नही जान पड़ते उसने सोचा क्यों ना ऊपर से सभी गीले गट्ठरों को हटा कर अंदर सूखे सूखे बोझ निकाल लिए जाएं।

   पीछे खड़े बिजुआ ने आबाज दी सँभारकें निकालियो आजकल बिच्छू सांप बहुत निकर रहे हैं,गिरीसिंह बोला- अरे बिजुआ तू डरपोक रहा मुझे कोई फर्क नही पड़ता गिरीसिंह थोड़े भारी दिमाग का था फिर भी बिजुआ कहता हुआ चला गया ध्यान से काम करियो,

    बौछार धीरे धीरे पड़ने लगी थी मौसम में उमस भरपूर थी समय कोई मध्य दिवस का रहा होगा गिरीसिंह अपने काम मे तल्लीन था उसने एक एक कर सभी भीगे हुए बोझ बाहर निकाल दिए वह एक एक कर बोझ(गट्ठर) कूटने के लिए ले जाता रहा जैसे ही वह आखिरी बोझ उठाकर कंधे पर लेकर चला ये क्या गिरीसिंह जोर से चिल्लाता हुआ बोझ दूर फेंकता हुआ भागा,सामने खड़े करुआ ने पूछा क्या हुआ गिरी,गिरी के मुंह से आबाज आई काट लिया नार(गर्दन)में किसी जहरीले जीव ने, करुआ भाग कर लाठी लाया और चरी के बोझ को पलटने लगा देखने ये क्या एक स्याह काले बिच्छू का जोड़ा उसमें बैठा हुआ दिखा,उसके होश धुँआ धुँआ हो गये लेकिन उसे समझने में देर ना लगी हो ना हो इन्ही बिच्छुओं ने इसे काटा हो ये तो विशेष जहरीले किस्म के हैं।

     वह भागता हुआ गिरी के पास आया और उसके गर्दन में दिख रहे डंक देखने लगा गिरी जोर जोर से चिल्ला रहा था लोग लुगाई इकट्ठे होने लगे सुगबुगाहट का दौर जारी था सभी अपने अपने प्रयत्नों से उसे शांति करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन सब असफल सिद्ध हो रहा था।

   गॉव में एक कहाबत प्रचलित थी बिच्छू का खावो रोबे सांप को खाबो सोबे,बिच्छू का जहर चढ़ता ही जा रहा था कोई गर्दन पर लोहे को रगड़ता कोई अन्य उपाय करता लेकिन उसका नशा बढ़ता ही जा रहा था गिरीसिंह अचेत होता जा रहा था उसका मुखमंडल लालवर्ण से सराबोर होता जा रहा था असहनीय दर्द को सहन करने की शक्ति उसके पास अब शेष न थी काले बिच्छुओं का विष उसके तंत्रिकाओं को वाधित करने लगा था। 

    सहसा भीड़ में से एक बुजुर्ग की आयी क्यों रे लेकिनसिंह मोड़ा को मारबे चाहतु है लेकिनसिंह गिरीसिंह के पिता का नाम था। लेकिनसिंह बोले नाहीं दद्दा बताओ का करें बुजुर्ग बोले जा मोड़ा को जल्दी तै जल्दी बगल के गॉव में बैध जी(झाड़ फूंक करने वाले) के ढिंगा (पास)लै चलौ या उन्हें जल्दी बुलवाय लेओ देर करना उचित नहीं जहर फैलता जा रहा है।

   अरे करुआ तू बैध जी को बुला ला जल्दी साइकिल से,देर ना होने पाए,इधर गिरीसिंह असहनीय पीड़ा से जारजार हुआ जा रहा था,करुआ साइकिल को दौड़ाता हुआ बैध जी के गॉव पहुँच गया उसने द्वार से ही आबाज दी बैधजी बैधजी कोई आबाज नहीं आयी अबकी बार करुआ बहुत तेज चिल्लाया बैधजी बैधजी भगत जी,अंदर से किबाड़ खोलकर कर बूढ़ी अम्मा बाहर आई और बोली का बात है लल्लू,करुआ बोला अम्मा बैधजी को साथ ले जाना है बगल के गॉव से आया हूँ लेकिनसिंह दाऊ के मोंडा(लड़का)को बिच्छू ने काट लिया है उसकी हालत बिगड़ती जा रही है अम्मा बोली डाट(दांती बंध जाना) तो नहीं पड़ी करुआ बोला अभी नहीं बैध जी कहां है. अम्मा जल्दी बताओ अम्मा बोली उनकी तबियत खराब है चारपांच दिन से खटिया पर पड़े है चल फिर नाहीं पा रहे छप्पर में लेटे हुए हैं।

    बैध जी ने आबाज दी कौन है जबकि वे अभी चलने फिरने में समर्थ ना थे लेकिन उनका कर्तव्य मानवीय सेवा का मोह उन्हें रोक ना सका वे झाड़ फूंक मंत्र सिद्धि एव जड़ी बूटी ज्ञान के सिद्ध पुरुष थे आसपास के गॉवों में वे वैधजी के नाम से विख्यात थे।अम्मा पास जाकर बोली बगल के गॉव में काहू मोड़ा को बीछू ने काट लयो है वाही के खातिर आयो है तुम्हें लैवे, बैधजी बोले उसे अंदर भेज,करुआ तेज कदमों से छप्पर में दाखिल हुआ उसने बैध जी को सारा व्रतांत कह सुनाया वैधजी बोले जल्दी से जल्दी मुझे उस मोड़ा के पास ले चल नहीं तो देर है जाबेगी,बैधजी ने अपने पास रखी एक पोटली को सँभाला और अपना सोटा(बेंत/लाठी) लेकर तेज कदमों से बाहर आगये आज उनका अपना मर्ज लगभग उनसे कोसों दूर जा चुका था बूढ़ा तन अतिशीघ्र पहुंच जाना चाहता था।

  थोड़ी ही देर में वे गिरीसिंह के पास पहुंच गए उन्हें देखते ही समझते देर ना लगी इसे एक बिच्छू ने नहीं बल्कि दो बिच्छुओं से कई कई बार काटा है उसकी नार(गर्दन)पर डंक स्पष्ट गोचर हो रहे थे बैधजी सोचने लगे कहीं मैंने देर तो नहीं कर दी बैधजी के माथे पर पसीना आ रहा था,उन्होंने करुआ को आबाज दी देख उस बोझ में क्या है देख तो सही,फिर मुझे बता,बोझ को खोला गया तो उसमें दो स्याह काले बिच्छू द्रष्टगोचर हुए बैधजी अब पूरी तैयारी में थे उन्होंने सोचा गर्दन में बिच्छुओं ने काटा है। अब बन्ध लगाना भी सम्भव नहीं,चलो भगवान का नाम लेते हुए मंत्र सिद्ध करते हैं बैधजी ने अपनी पोटली से कोई जड़ी बूटी निकाली और गिरी की पत्नी को दी इसे तुम गिरी के नासिका के पास लगाए रखना,ताकि ये चेतना में लौट सके अब बूढे हाथ गर्दन को विशेष बूटी से मन्त्रपूरित करने लगे मंत्र की शक्ति काम आती दिख रही थी कुछ ही देर में गिरीसिंह को होश आने लगा अब बैधजी का चेहरा प्रसन्न होता जा रहा था साथ ही लोगों के चेहरे मन ही मन बैधजी के गुणगान कर रहे थे, उस दौर में चिकित्सा के सरल माध्यम गॉव की बैध,भगत ही हुआ करते थे उन्हें नाड़ी विज्ञान में महारत हासिल होता था,कुछ देर में मंत्र से बिच्छुओं का जहर झड़ने लगा  बैध जी निरन्तर जड़ी बूटी के साथ मंत्र पढ़ रहे थे फिर क्या गिरीसिंह के मुख पर चेतना  लौटने लगी उसका विषदोहन हो गया प्रतीत होता था गॉव के लोग लुगाइयों के चेहरे खिल उठे सभी ने एक सुर में भगवान  की जय हो का उच्चारण किया और वैधजी की जय घोष होने लगी गिरीसिंह अब स्वस्थ हो गया था,

    गिरीसिंह गॉव के जमीदार का इकलौता बेटा था जमीदार जी बैध जी के पैरों के सामने झुक गए और और बोले बैध जी कुछ जलपान कर लीजिए एव हम आपको कुछ मुद्रा भेंट करना चाहते हैं बैधजी बोले नहीं हम जब भी किसी रोग का उपचार करते हैं तो हम किसी लालच या धन के प्रलोभन में नहीं करते ये सेवा, अगर ऐसा हमने किया तो हमारे गुरू द्वारा दिया गया मंत्र अप्रभावित हो जाएगा एव बैध जी बिना किसी सेवाशुल्क/जलपान के अपने गॉव वापिस चले गए सब ओर आनन्द छा गया सभी उस बूढ़े बैध के कायल हो गए सच्चे मायनों में वे एक विशेष सबक पढ़ा गए थे।

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२४.१२.२०२१ ०१.१५ मध्यरात्रि

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