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मदिरा के नशे में वह इतना झूम गया,
पत्नीजी की जगह पड़ोसिन को चूम गया,
उसकी आंखें मस्त और मदहोश थी,
चूमी गयीं पड़ोसिन भी खामोश थी,
वह तो कुछ नहीं बोल पाई,
कहीं खुल ना जाए सच्चाई,
उसने जैसे ही पड़ोसिन को चूमा
पास खड़ी पत्नी का माथा घूमा
रोज रोज छुपकर रसगुल्ले खाता था
तब ही छत पर खड़ा हो मुस्कराता था
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अब मैं तुझे बताऊंगीं
गरम गरम रोटियाँ खिलाऊँगी,
पत्नीजी के नयन हुए सुर्ख लाल,
झाडू से कर दिए पतिदेव मालामाल,
उधर खबर पड़ोसिन के पति को लगी,
उनके अंदर की भी वीरता जगी,
लाठियाँ भांज दी बीस पचास,
मंजर देख पत्नीजी हुई हताश,
पतिदेव ने लट्ठ से भरपूर सुताई की,
पड़ोसी की और अपनी लुगाई की,
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तेरी सह मर्जी के बिना वह कैसे मुस्करा
सकता है,
पास आकर चूम कर कैसे गले लगा
सकता है,
सुराप्रेमी जब अपने द्वार आया
हनक से रुआब से चिल्लाया,
पत्नीजी की आंखों में था लहू का गोला,
वह यह दृश्य देख सराफत से बोला,
पत्नी जी मैं गलती से उसे चूम गया था,
ना जाने क्यों आज माथा घूम गया था,
पत्नी बोली उसने मेरा घर उजाड़ दिया,
कलमुँही ने मुझे जिंदा ही मार दिया
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इधर का दृश्य अब गुस्सा से सराबोर था,
उसका पत्नी जी को मनाने पर जोर था,
उधर पड़ोसी से भी रिश्ते दागदार हुए,
शराब के शौक से रिश्ते तार तार हुए,
शराबी कुछ एक ठौर तक शेर होता है,
दबंग के द्वार नशा कमजोर होता है,
सुरा के साथ तुम खूब रंगरेलियां मनाओ,
मगर होश में बाहोश डगर आओ,
वरना जबरदस्त लट्ठों से कूटे जाओगे,
गर नशे में आपे से बाहर नजर आओगे,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२५.१२.२०२१ ०३.५० दो
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