कम आँकना छोड़ दे.
फैला तू अपने"पर"परिंदे,
दिखा दे उड़ान अपनी,
नाप सकता है तू भी,
जमी और आसमान,
कम आंकना छोड़ दे,
खुद को परिंदे,
उड़ परिंदे चल परिंदे,
बढ़ परिंदे,
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भागता है जब कोई शातिर,
काटने "पर' परिंदे के
वास्ते,
हो हुजूमों में इकट्ठे,
गिराने की सोचने बाले,
खुद व खुद गिर पड़ेंगे,
भागते भागते,
उड़ परिंदे चल परिंदे,
बढ़ परिंदे,
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नाप लेगा तू समुंदर और नदियां,
तू चला चल अपनी धुन में,
सोच मत पीछे पड़ा क्या,
रोकने को आएं वेशक,
तेरे रस्ते हो इकट्ठे,
भाग उड़ चल तू परिंदे
उड़ परिंदे चल परिंदे,
बढ़ परिंदे,
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लिख अमिट अध्याय अपना
लिख स्वयं इतिहास अपना
लिख नया सौभाग्य अपना,
नए सफर पर चल परिंदे
जय सुनिश्चित कर परिंदे,
शक्ति संचित कर परिंदे,
उड़ परिंदे चल परिंदे,
बढ़ परिंदे,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
३१.०१.२०२१ १०.२५ रा.
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प्रकाशित ३०.१२.२०२१ ८.२० सु
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