शेर(जनता बोलना चाहती है!)

 

जनता बोलना चाहती है!

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बगल की गली में भारी सुगबुगाहट है,

पन्द्रह लाख खाते में आने की आहट है,

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दबा कर रखो जुबान चोर सुन लेगें,

सुना है आजकल दीबारों के कान होते है,

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गरीब बूढ़ी माँ इस इंतजार में है सुनो भाई,

मेरे बेटे की नौकरी की डाक क्यों नहीं आई,

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गड्डे बड़ी ही रफ्तार से मिटाने की फिराक में हो,

पता है तुम फिर चुनाव जीतने की ताक में हो,

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सन्नाटा स्याह सन्नाटा ये नया कोई गुल खिलायेगा,

आदमी अब अपने हिसाब से कुछ नया लाएगा,

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खूब तेज चिल्लाने से झूठ सच नही होता जनाब,

चुनाव सिर पर है सब जानते हैं हम भी हिसाब,

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रोजगार की बाढ़ सी आ गयी है मौजूदा दौर में यारो,

इम्तहान का पर्चा बेंचने का रोजगार चल

पड़ा है,

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लहर पर लहर बदस्तूर जारी है बदलते रूप में,

इन रैलियों पर रोक क्यों नहीं समझ आता नहीं,

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गरजते हैं खूब गरजते हैं रैलियो में सफेद पोश

यहां वहाँ,

आदमी व्यापारी कितना तबाह हैं देख लो कभी ईमान से,

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पन्ने हां पन्ने और कलम दुबक गए हैं डर कर

यारो,

उन्हें खौफ हैं फिर गलत हाथों में ना चली जाऊं कहीं,

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एक आदमी कैलकुलेटर खरीद का लाया अपने घर,

पत्नी ने पूछा तो बोला लाखों का हिसाब रखना

है,

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इम्तहान इम्तहान क्या बला है बताओ तो

सही,

जब पेपर बेचना ही था तो फीस क्यों ले

ली युवाओं से,

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गरीब की झोपड़ी खुद्दारी से जोर से और

जोर से बोली,

मुझे रोजगार दे दो अनाज देकर अपाहिज

मत बना दोस्त,

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सारी दुनियां की मदद करने की ठान बैठे हो जनाब,

जनता कितनी महगाई से घुट रही है कोई है हिसाब,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०४.१२.२०२१ ११.१७ रा.




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