कविता(मनुजता)

      
💐💐मनुजता💐💐

काली हों जब विपरीत घटाएं,              
घनघोर विकट जब बादल छायें,             

भीषण तिमिर की कटक लेकर    
वेशक समक्ष महाकाल आएं ,
भीषण तिमिर को भेदना,          
हे मनुज तू भान रखना,
हो ना किसी को वेदना, 
             
अडिगता तू दिखा कुछ कदम ऐसे भर, 
हो दिशाएं शांत चारो कार्य ऐसा कर,
प्रेम करुणा मोद की बरसात हो,
प्रेम से रसमय दिवस और रात हो,
मनुजता हो अस्त्र तेरा,
प्रेम का पहरा घनेरा,
सृष्टि सारी गान तेरा कर उठे,
भेद और बैर का अंधियारा मिटे,

काल वेशक आएं सम्मुख             
तू न रुकना सत्यपथ से हो विमुख    
भयभीत हो साहस न खोना,
दर्द अपना औऱ के सम्मुख न रोना,
दिव्यता और भव्यता का पाठ पढ़ना,
तुम सदा राष्ट्र रक्षा हेतु बढ़ना और लड़ना,
शौर्य निष्ठा ज्ञान मेघा का नया प्रभात हो,
सृष्टि तेरे गीत गाये तब कहीं कुछ बात हो,,

इतिहास उन्हीं को ध्याता है ये भान रहे,  
जो कुछ विशेष कर जाता है ये ध्यान रहे,,  
तुम सदा मनुजता को रखना उर में भाई,
ये दिव्य पुरुष के लक्षण हैं ये है सच्चाई,
कर्तव्य बोध का ध्यान सदा रखना होगा,  
अपना और उनका मान सदा रखना होगा    

हम तो श्रेष्ठ नर हैं यह भान रहे, 
हम श्रेष्ठ पिता की संतानें ये ध्यान रहे,
ये ध्यान रहे ये भान रहे,
अभिमान रहे,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
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०५.१२.२०२१ ०९.३८ रा
                                                                               

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