गजल(उसका खत निकला)

गजल

(उसका खत निकला)

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किताब के पन्ने से उसका गुलाबी खत

निकला,

उस जमाने का अनकहा अलबेला सच

निकला,

वह इश्क करती थी बेपनाह खूब छुप 

छुप कर,

मगर उसका खत बहुत मुद्दत के बाद

निकला,

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छुपते छुपाते खत उसने मेरी किताब में 

रक्खा होगा,

मैं पढूंगा उसे ये यकीनन भरोसा पक्का

पक्का होगा, 

खत बहुत मुद्दत के बाद मुझे वह नजर

आया यारो,

उसने जरूर मेरे जवाब आने का खूब

सब्र रक्खा होगा,

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लबों पर हौले हौले से मुस्कान उसके

आती थी,

खूबसूरत थी वह खूब शिद्दत से गीत

गाती थी,

टिफिन में उसके खीर जब जब होती 

थी खाने में,

मुझे वह बड़े अदब और प्यार से पास 

बुलाती थी,

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याद आये सब पल परत दर परत खत

के बाद,

उसकी शालीनता उसकी महकी अदा

और याद,

वह गजब दौर था मखमली ख्बाव थे,

वह भी मगरूर थी हम भी मगरूर थे,

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शिव शंकर झा "शिव'

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०१.०१.२०२२ १२.०५ रात्रि

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