शेर(सपनों की उड़ान)

 


(सपनों की उड़ान)

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१.जागता हुआ ख़्वाब देखता हूँ मैं,

सोचता हूँ वक्त जाया ना चला जाए,

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२.जंग जीती गयी देर से वेशक,

मगर पेशानी पर गुरूर है हारे तो नहीं,

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३.सपना पूरा एक बार में ना हुआ तो क्या,

मैंने हार कर हथियार तो नहीं डाले,

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४.मैं चलता रहूंगा सफर शिद्दत के साथ,

मैं हारने वाला मुसाफिर नहीं जान लो,

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५.खामोशियां मेरी देखकर बहुत खुश है तू,

इल्म रहे इसकी आबाज दूर तलक जाएगी,

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६.जिस्म में आखिरी बूंद भी रहेगी लहू की,

उफ तक नहीं होगी आखिरी दम तक,

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७.सपना जागकर देखना सीख ए आदमी,

नींद के सपने ख्वाब ही रह जाते हैं अक्सर,

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८.सरोकार मिट्टी से गहरा है मेरे दोस्त,

कफ़न गर तिरंगे का मिले तो बात बने,

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९.थकान को सपनों की उड़ान तक ना 

आने दे,

जीत जाएगा तू गर ख्वाब ख्वाब ना रहे,

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१०.कामयाबियाँ पीछे और पीछे आयेगीं

एक दिन,

वस तू तो सफर पर पूरी शिद्दत से चलता

चल,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०१.०१.२०२२ ५.४५ शा.

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