शेर(शिकस्त का खौफ!)

 

(शिकस्त का खौफ!)

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१.शिकस्त के खौफ से मैदान ना छोड़ देना,

जीतते है वही जो सामना करते हैं धुंआधार, 

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२.आखिरी सांस तक तू हार मत मानना,

बाजी हाथ आएगी जरूर ये ध्यान रहे,

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३.हकीकत की जमीं पर पैर रखकर चल,

दुनियां बहुत जालिम है नजर बचा के चल,

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४.सियासी मैदान को अदाबत में ना बदल,

अवाम जबाव दे देगी पुरजोर तू मस्त चल,

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५.मजाक उड़ाने बालों को सहेज कर रख,

इनका लहू जलेगा जरूर तेरे कद को देख,

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६.वह बेतहाशा दोस्ती का ढोंग करता रहा,

वक्त जब नासाज था वह नजर नहीं आया,

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७.चालें हर ओर दोनों ओर मौजूद हैं,

समझना है तुझे इनसे पार कैसे पाना है,

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८.इंसान को कब मिली है फतह सुकून से,

हर ओर भीषण तिमिर का साया खड़ा है ,

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९.बाजी पलटने को कुछ शकुनि हैं तैयार,

कुछ तीर तरकश में शेष रख ये इल्म रहे,

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१०.जनाब अब रेबड़ियाँ नहीं बांट पाओगे,

चाबी हाथ में है बेशक मगर गोलक ना खोल पाओगे ,

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११.फितरत बदल दो हसरत हो जाएगी पूरी,

लोग चौकन्ने हैं अब शायद जाल बदल लो,

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१२.हवा का रुख बहुत ही पशोपेश में है,

सांस किसकी उखड़ेगी जापै मेरा जोर नहीं,

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१३.शतरंज के मोहरे हराने की जुगत में हैं,

जमीन सपाट है पर नजर साफ नहीं आती,

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१४.जीत और हार तो आनी जानी है मेरे दोस्त,

मगर घबराकर हथियार ना डाल देना तू कहीं,

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१५.खैर अब क्याक्या जुगत जुगाड़ चलोगे,

चुनावी जमीन डिजिटल है कैसे लड़ोगे,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१०.०१.२०२२ ०२.५९ दो.

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