व्यंग्य(सियासी गठजोड़!)

    

व्यंग्य

(सियासी गठजोड़!!)

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रहनुमा क्यों दकादक छोड़ रहे हैं दल,

गहरा रही है सियासी क्षितिज पर हलचल,

क्यूं कैसे अब इनका आत्मसम्मान डोला,

पांच वर्ष तक ये रहनुमा क्यों नहीं बोला,

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क्या ये मौकापरस्ती का गठजोड़ हो रहा है,

शायद इसी बाबत ये जोड़ तोड़ हो रहा है

कल आज और कल हाँ सब संशय में है,

बगावत की बजह से सियासत भय में है,

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पुराना कार्यकर्ता सदा से अनुशासित रहा,

वह भी टिकट पाने हेतु आशान्वित रहा,

अफसोस उसकी टिकट काट दी गयी,

दल बदलुओं को सस्नेह बांट दी गयी,

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ये घोर सियासी अपमान है तिरस्कार है,

दलों का सौतेला मलिन स्वार्थी व्यवहार है,

उठो उपेक्षित कार्यकर्ताओं विरोध करो,

युवाओ अपने हक अधिकार की बात करो,

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हम अंतिम पंक्ति के कार्यकर्ता को भी

क्या टिकट मिल पाएगी,

या फिर हमारे हिस्से में मात्र तिरस्कार 

रूपी रोटी आएगी,

क्या कभी सियासी रहनुमाओं हमें भी

टिकट दे पाओगे,

अन्यथा छल छद्म मजहबी चालों में ही

सर्वदा फंसाओगे, 

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हम शांत हो जीवनपर्यन्त झोला टाट झंडा

उठाते रहे,

अपने दल की विरुदावली निष्ठापूर्ण हो नित

गाते रहे,

जब चुनाव आये टिकट की भीनी भीनी मीठी

बरसात हुई,

ये क्या दलबदलू टिकट पा गया हमारे यहॉ

स्याह रात हुई,

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आपने टिकट दलबदलू मौकापरस्त को 

क्यों दे दी,

ईमानदार सरल सच्चे कार्यकर्ता की बली

क्यों ले ली,

अब हम भी बगावत करना चाहते हैं सुनो

महानुभाव,

बहुत हुआ अनुशासन अब देखना हमारा

सियासी दाव, 

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शिव शंकर झा'शिव'

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१२.०१.२०२२ ०९.५६ रात्रि

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