नेताजी को सबक !
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वह गली के नुक्कड़ पर"मत" माँगता मिला,
हमें देखते ही उसका मुखमंडल खिला।
नकली हँसी चमकते दांत दिखाए,
भैया जी राम राम नेताजी चिल्लाए।
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हमने भी शिष्टाचार का परिचय दिया,
उन्होंने भी पुनःजोरदार प्रणाम किया।
माननीय जी ने झट से पटुका निकाला,
और बिना सहमति के गले मे डाला।
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हमने कहा नेता जी ये रंग मत दिखाइए,
ये पटुका दल का है इसे त्वरित हटाइये।
हम पटुका पहन कर गुण नहीं गायेंगे,
हम जागरूक हैं नीतियों पर साथ आएंगे।
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माननीय जी को असहज धक्का लगा,
समूह के मध्य जननेता हक्काबक्का लगा।
जनता सहसा अपनी निद्रा से जागने लगी,
इक ओर छिटककर दूर भागने लगी।
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हमने मत दाताओं को रोका और कहा,
पाँच वर्ष तक वादाखिलाफी को क्यों सहा।
अब वक्त है अपनी सामर्थ्य दिखाइये,
कुर्सी के मद में चूर जननेता को बताइए।
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हम जनता हैं अपनी पर आने पर धूल चटा देते हैं,
एक बटन की ताकत से एक झटके में हटा देते हैं।
नेताजी से कह दो हम पांच वर्ष तक तुम्हारे दर्श को तरस गए,
इतने अंतराल के बाद हमें पुनःबरगलाने हेतु बादलों से बरस गए।
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माननीय सहम से गए छुटभैये भी शांति
दिखे,
मतदाता बोला नेता जी इस बार कितने
में बिके।
दल बदल आये नया चुनाव चिन्ह ले आये
निष्ठा सौंप आये,
जिसने तुम्हें राजनीति सिखाई खंजर उसी
के घौंप आये।
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हमने तुम्हे नहीं अपने उस दल को चुना
था,
शायद तुम इस भरम में थे कि हमने तुम्हें
चुना था।
चले जाइये यहां से स्वर्थ रतता हमें मत
दिखाइए,
और हां नेताजी हमारी गली में दोबारा
मत आइये।
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हम गुस्से से लबरेज हैं नीतियों की कार गुजारियों से तंग हैं,
अदला बदली बयान बदली दल बदली
देखकर बहुत दंग हैं।
आपका इस बार विरोध हम हर ओर करेगें,
गलत नीतियों का वहिष्कार पुरजोर करेगें।
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बरगलाने झूठ का चश्मा सलीके से पहनाने
में माहिर हो,
हवा का रुख बदलने में भांपने में तुम जग
जाहिर हो।
अबकी बार मुकाबला जागरूक मत दाता
से हो गया है,
हमने जिसे दान दिया वह राजा बना बरना
रो गया है।
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सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१६.०१.२०२२ ११.५३पूर्वाह्न.
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