शेर(अब वह बात ना रही!!)

(अब वह बात ना रही !)

-----

हमें रहमो-करम पेै रहने की आदत ना रही दोस्त,
उनसे कह दो जरा, जरूर अब वह बात ना रही,

-----

ता-क़यामत तक फख्र से रहेगें हर दौर,

अब उनमें हमें खरीदने की ताकत ना रही,

-----

उनकी हर हरकत पर नजर है शिद्दत से,

उन्हें लगा हमें उनकी कारगुजारी की खबर ना रही,

-----

इल्म रहे जमीन दो गज ही मिलेगी दफन के लिए,

आखिरी वक्त किसी की भी वादशाहत ना रही,

------

मौत का स्याह फरमान जारी हो गया जब,

अब उनमें इसे रोकने की ताकत ना रही,

------

वह वक्त था दौरे जमी हुक्म को आमादा थी,

आज उनकी विरासत की वह हनक ना रही,

-------

गरीब की रोटी मुफलिसी में वह लूटता रहा बेखौफ,

हड्डियों ने पुरजोर सजा मुकम्मल की अब हरकत ना रही,

-------

वह जब रसूख,दौलत से सराबोर अर्श की बुलंदियों पर रहा,

तब शायद उसमें वक्त की फितरत जानने की फुर्सत ना रही, 

------

हुजूम लोगों का जिंदाबाद करता रहा सुबहे शाम रोज,

उसमें उस भीड़ की चाहत जानने की आदत ना रही,

-------

परिंदों के पर वह काटता रहा बेखौफ अपने दौर बेहिसाब,

ये वक्त का हिसाब बड़ा जालिम है उसमें ये समझ ना रही

-------

गलतियों पर गलतियां करता रहा वह रसूख के दम पर,

हर समय हर वक्त एक सा नहीं ये फिकर ना रहीं,

-------

आखिरी उस छोर पर कौन गमगीन है दर्द से बेहिसाब,

वह बादशाह था बेशक मगर इंसानियत ना रही,

-------

अब उसे मलाल हैं रंजओगम है अपनी बे हया हरकतों का,

हाथ से रेत फिसल गयी अब वह बात ना रही,

------ 

उससे कह दो कोई अब भी सुधरने की बात मान ले,

वक्त फिसलने को है सदा ना दिन,सदा रात ना रही,

-------

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१८.०१.२०२२ ११.४८ पूर्वाह्न


Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !