कविता
(समय की गति)
💐💐💐💐💐💐💐कभी स्थिर समय हो कर कहीं ठहरा
रहा है क्या,
सदा घनघोर रात्रि का घना पहरा रहा
है क्या,
समय को भी बता देगें समझ और
ज्ञान की ताकत,
कभी नदियों का बहता जल कह
ठहरा रहा है क्या,
💐💐💐💐💐💐💐
थपेड़ों की हनक पर वार कर आगे
सफर कर,
कदम को कर प्रबल स्वयं अपनी
विजय कर,
मिटेगें सकल भय के घोर स्वर घन
घोर आडम्बर,
गगन के खुले मंडप में कोई पंछी
सदा स्थिर रहा है क्या,
💐💐💐💐💐💐💐
दिवस और रात्रि सबको इक समय
पर बीत जाना है,
पुनः दिनकर के रथ आरूढ़ हो
प्रभात आना है,
कहीं तू हार से भयभीत हो मत बैठ
जाना,
कभी डरपोक के उर में प्रबल संबल
रहा है क्या,
💐💐💐💐💐💐💐
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२१.०१.२०२२ १२.१५ पूर्वाह्न