काव्यगीत
*बाबूजी की याद*
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बाबूजी की कही बात वह याद आगयी,
बाबूजी फिर आज आपकी याद आगयी,
चूम गये चुपके सिरहाने आ कर माथा,
बाबूजी की विद्या प्रणय की याद आ गयी,
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छत के ऊपर रखा वह सोटा याद आगया,
पीतल का वह भारी लोटा याद आगया,
याद आ गया गले लगाकर डांट खिलाना,
खुरचन रबड़ी का वह दोना याद आगया,
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याद आगया डांट खिलाकर पास बुलाना,
याद आगया पास बुलाकर मंत्र सिखाना,
याद आगयी ताख़ी पर रखी वह माला,
याद आगया जीवन का दर्शन सिखलाना,
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याद आगयी आंगन की वह सौंधी माटी,
याद आगयी सीधी सच्ची बोली खाँटी,
याद आगयी साँझ ढले की मंत्र साधना,
याद आगयी दिव्य शक्ति संचित परिपाटी,
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वह मेवा का पाग याद अनुराग आगया,
वह फाल्गुन का फाग सुनाना याद आगया,
याद आगयी द्वार पर रक्खी मच्छरदानी,
बाबूजी का आभामंडल याद आ गया,
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याद आ गया डेढ़ रुपये का खुला निमंत्रण
कामयाब हो पढो सफलता का आमंत्रण,
बाबूजी वह सीख आपकी याद आ गयी,
पिता गुरू का दिव्य मेल अद्वितीय संरक्षण,
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सदा हमारा रहा गर्वयुत उन्नत माथा,
साथ खड़ा था छत्र पुत्र का भाग्यविधाता,
आप सदा मेधा और बल के तेजपुंज थे,
शब्द नहीं कह सकें आपकी अनुपम गाथा,
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बाबू जी की डांट और गहरा अनुशासन,
सत्यनिष्ठ वाणी गम्भीर अद्भुत सम्भाषण,
सदा सत्य का मार्ग सिखाते थे बाबूजी,
राजनीति का ज्ञान और सत्ता स्वशासन,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०३.०१.२०२२ १२.३१ मध्यरात्रि
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