【धुँआधुँआ!】
वह धुँआधुँआ जलता रहा रातभर यूँही,
आब की रंजिश थी फखत देखता रहा,
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वह शहर में हर रोज नए दोस्त बनाता रहा,
मगर दर्द की आह तन्हा ही उठाता रहा,
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हमें अब कुछ लोग चाहने लगे हैं बखूब,
खबर लगी है उनकी आबाज बन गया हूँ,
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उनकी आबाज जुबान से काफूर क्यों है,
जुबान है बेशक मगर मजबूर क्यों है,
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उनका ज़मीर अब सब हदें तोड़ने को है,
अब शायद तहजीब तमीज छोड़ने को है,
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क्यूं हरओर घनघोर हताशा का हुकुम है,
वह गमगीन क्यों है जानने की जुर्रत करो,
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रुतबा रुआब हनक सब बेमानी है सुन,
तेरी फखत चार दिन की जिंदगानी है सुन,
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ताकत को परख,कर,चोट जोरदार दोस्त,
ज्यादा तमीज अब कमजोर की निशानी है,
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दोस्ती उसे नहीं कहते सिर्फ महफ़िल सजें,
खड़ा रहे हमसाये सा दोस्ती उसे कहते हैं,
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चिंगारियां शोला बननें को क्यों हैं बेताब,
पता करो ये बयार किसका घर जलाएंगी,
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सिसकियां,आह जब कराह बनी घुटन से,
वह अकेला रोता रहा पास कोई ना रहा,
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उसे गुमान था बखूब बहुत दौलत का,
हिसाब का वक्तआया तब मुफ़लिस ही रहा,
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पानी आज पानी पानी हो गया देखकर
मंजर,
महज दो टूक के खतिर माँ दरबदर हो
गयी,
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गले मिलने से परहेज है दिल खफा है कोई
बात नहीं,
वक्त पर रूबरू हो तब कम से कम हाथ तो
मिलते रहें,
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फ़खत वह कुछ दौलत के बदौलत लूटता रहा
सारा जहाँ,
जब नफा नुकसान मिलाया गया तो सफर
सिफर ही रहा,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२२.०१.२०२२ १२.५५पूर्वाह्न मध्यरात्रि