शेर(धुँआधुँआ!)

 

【धुँआधुँआ!】

वह धुँआधुँआ जलता रहा रातभर यूँही,

आब की रंजिश थी फखत देखता रहा,

--------

वह शहर में हर रोज नए दोस्त बनाता रहा,

मगर दर्द की आह तन्हा ही उठाता रहा,

--------

हमें अब कुछ लोग चाहने लगे हैं बखूब,

खबर लगी है उनकी आबाज बन गया हूँ,

--------

उनकी आबाज जुबान से काफूर क्यों है,

जुबान है बेशक मगर मजबूर क्यों है,

--------

उनका ज़मीर अब सब हदें तोड़ने को है,

अब शायद तहजीब तमीज छोड़ने को है,

--------

क्यूं हरओर घनघोर हताशा का हुकुम है,

वह गमगीन क्यों है जानने की जुर्रत करो,

---------

रुतबा रुआब हनक सब बेमानी है सुन,

तेरी फखत चार दिन की जिंदगानी है सुन,

--------

ताकत को परख,कर,चोट जोरदार दोस्त,

ज्यादा तमीज अब कमजोर की निशानी है, 

--------

दोस्ती उसे नहीं कहते सिर्फ महफ़िल सजें,

खड़ा रहे हमसाये सा दोस्ती उसे कहते हैं,

------- 

चिंगारियां शोला बननें को क्यों हैं बेताब,

पता करो ये बयार किसका घर जलाएंगी,

------

सिसकियां,आह जब कराह बनी घुटन से,

वह अकेला रोता रहा पास कोई ना रहा,

--------

उसे गुमान था बखूब बहुत दौलत का,

हिसाब का वक्तआया तब मुफ़लिस ही रहा,

--------

पानी आज पानी पानी हो गया देखकर

मंजर,

महज दो टूक के खतिर माँ दरबदर हो

गयी,

---------

गले मिलने से परहेज है दिल खफा है कोई

बात नहीं,

वक्त पर रूबरू हो तब कम से कम हाथ तो

मिलते रहें,

--------

फ़खत वह कुछ दौलत के बदौलत लूटता रहा

सारा जहाँ,

जब नफा नुकसान मिलाया गया तो सफर

सिफर ही रहा,

-------

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२२.०१.२०२२ १२.५५पूर्वाह्न मध्यरात्रि

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !