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कमाल हो गया दौरे जहां सुन गौर से सुन,
बैसाखी चुरा वह बैसाखियाँ बाँटता रहा,
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अब दिल की आबाज उन्हें नहीं आती,
तेरी सूरत तेरी सीरत उन्हें नहीं भाती,
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वह जमीन दौलत की भूख में भागता रहा,
मुफ़लिस दो टूक "उम्र भर" मांगता रहा,
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तेरे हिस्से की जो शौहरत है मिलेगी जरूर,
वक्त जरूर देगा मुनासिब वक्त देखकर,
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जहाँ में हर ओर मनपसंद लोग नही मिलते,
कहीं दिल मिलते है कहीं कहीं नहीं मिलते,
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खिताब मिलते गए उसे रोज रोज नए नए,
वह इंसान बना रहा इतना होने के बाद भी,
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उसे लगा मेरी शोहरत से चिढ़ है इन्हें,
वह गफलत में सराबोर रहा नेक आदमी,
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उसके उसूल उसे लोगों से अलग करते रहे,
क्या करे वह कुछ लोग स्वार्थ पर मरते रहे,
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जब कभी दिल,दिमाग,वक्त साथ नही देता,
पता करो इस दौर कौन साथ नहीं देता,
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तू तरक्की की राह चढ़ रहा होगा जब,
भर भर हर पहर लोग आएंगे तेरे दर,
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हिस्से के हिस्से होते रहे रोज बराबर हिस्से,
किसी को मिली दौलत किसी पर बने किस्से,
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हौसला और जोश तेरा कमजोर होने ना पाए,
कोई साथ दे ना दे फब्तियां कसे या मुस्कराए
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उसका"हक"हनक से छीन ले गया कोई अपना ही,
फखत कुछ वक्त मस्त रहा फिर खाली हाथ हो गया,
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जब कभी तेरे हिस्से में गम और शिकस्त आएगी,
यही भीड़ तुझे दिल औऱ दिमाग से छिटक जाएगी,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२४.०१.२०२२ ११.१४ पूर्वाह्न
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