शेर(गौर से सुन!)

 


(गौर से सुन!)

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कमाल हो गया दौरे जहां सुन गौर से सुन,

बैसाखी चुरा वह बैसाखियाँ बाँटता रहा,

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अब दिल की आबाज उन्हें नहीं आती,

तेरी सूरत तेरी सीरत उन्हें नहीं भाती,

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वह जमीन दौलत की भूख में भागता रहा,

मुफ़लिस दो टूक "उम्र भर" मांगता रहा,

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तेरे हिस्से की जो शौहरत है मिलेगी जरूर,

वक्त जरूर देगा मुनासिब वक्त देखकर,

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जहाँ में हर ओर मनपसंद लोग नही मिलते,

कहीं दिल मिलते है कहीं कहीं नहीं मिलते,

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खिताब मिलते गए उसे रोज रोज नए नए,

वह इंसान बना रहा इतना होने के बाद भी,

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उसे लगा मेरी शोहरत से चिढ़ है इन्हें,

वह गफलत में सराबोर रहा नेक आदमी,

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उसके उसूल उसे लोगों से अलग करते रहे,

क्या करे वह कुछ लोग स्वार्थ पर मरते रहे,

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जब कभी दिल,दिमाग,वक्त साथ नही देता,

पता करो इस दौर कौन साथ नहीं देता,

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तू तरक्की की राह चढ़ रहा होगा जब,

भर भर हर पहर लोग आएंगे तेरे दर,

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हिस्से के हिस्से होते रहे रोज बराबर हिस्से,

किसी को मिली दौलत किसी पर बने किस्से,

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हौसला और जोश तेरा कमजोर होने ना पाए,

कोई साथ दे ना दे फब्तियां कसे या मुस्कराए

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उसका"हक"हनक से छीन ले गया कोई अपना ही,

फखत कुछ वक्त मस्त रहा फिर खाली हाथ हो गया,

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जब कभी तेरे हिस्से में गम और शिकस्त आएगी,

यही भीड़ तुझे दिल औऱ दिमाग से छिटक जाएगी,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२४.०१.२०२२ ११.१४ पूर्वाह्न

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