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समय की चाल बहुत निराली,
कभी जेब भरी कभी खाली,
कभी अंधड़ कभी पतझड़,
कभी चहुदिश हरियाली,
कभी सघन वन,कभी निर्जन,
कभी दाल घी भर,
कभी निबाला कौर भर
कभी हर पत्थर शंकर,
कभी कभी कंकर,
कभी नेह,कभी बैर,कभी दुलार,
यही है जीवन का अद्भूत संसार,
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कभी धूलधूसरित काया,
कभी घर में अपार माया,
कभी सहोदर अपार नेह,
कभी अपने अपने गेह,
कभी मस्त मौला जीवन,
कभी उधेड़बुन की सीवन,
कभी चिंताओं की मार,
कभी घना सुकून और प्यार,
यही है जीवन का अद्भुत संसार,
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कभी हर बात मुस्कराते टाली जाए,
समय टेड़ा हो तब वही बात निकाली जाए,
कभी घनघोर अपमान की बरसात हो,
कभी मान से परिपूर्ण सौगात हो,
कब वह दिवस या रात होगी,
जब तिरस्कार की घनघोर बरसात होगी,
तरबतर हो अपमान से सराबोर हो जायेगे,
उस जलप्लावन के बाद इंसान हो जायेगें,
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परिपक्व समय के थपेड़ो को झेलने वाले,
धीर गम्भीर मुश्किलों से खेलने वाले,
सुना है जब समय विपरीत हो तब,
अपने भी साथ छोड़ जाते हैं,
नहीं वह साथ नही आपके हौसले,
को आपके साथ छोड़ जाते हैं,
ताकि आपको इंसान बना सके,
आप अपनी ताकत जान सके,
हार कर नहीं डटकर मुकाबला करेगें,
हर विपरीत काल का सामना करेंगे,
हार कर कब मिली है मंजिल मेरे भाई,
चल कदम संभालकर देख परछाई,
जीतना है हमें हर मुकाबला धुंआधार,
हर हाल हर तरह हर बार,बार बार
तू अपने पंख पसार कर प्रहार,
यही है जीवन का अद्भुत संसार
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०५.०१.२०२२ ११.४८ रात्रि
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