गजल💐काहे सुरूर में है!💐

 

💐💐गजल💐💐

💐काहे सुरूर में है!💐

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दूरियाँ रिश्तों में यूँ हीं बेवजह न बढ़ा,

चंद दिन बख्शे हैं तल्खियाँ ना बढ़ा,


मिलते रहो कभीकभी वक्त निकालकर,

क्या खाक जिओगे रिश्तों को हार कर,

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जिसे अपने लहू पर भरोसा ही नहीं,

मेरी नजर में वह "इंसा"इंसा ही नहीं,


आदमी "आदमी" से खफा क्यों है,

पता करो ये इतना बेवफा क्यों है,

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तेरा वहम है कि तू बुलन्दियों पर है,

ना घर,ना दौलत, ना ये तेरा शहर है,


परिंदे भी अब भरोसा नहीं करते,

उनने देखें हैं रोज दरकते रिश्ते,

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पता कर तेरा दिलों पर राज है कि नहीं,

ये भी पता कर कि तू आदमी है कि नहीं,


सामने जब पड़ा अपना तो वह ठिठक गया,

गले लगाना तो दूर देखकर दुबक गया,

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तुझे मालूम भी नहीं तेरी रबानगी कब है,

ये तो बस एक हल्की सी बानगी भर है,


गले लगा नहीं सकता तो गला भी ना दबा,

सराबोर है "दुख"से ये मंजर देखकर हवा,

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साहब"दोस्त"इतनी दूरियाँ भी ठीक नहीं,

सामने पड़ो तब नजरें झुकाना ठीक नहीं,


अरे ये तो बता किस बदौलत गुरूर में है,

सांस तक बस में नहीं काहे सुरूर में है,

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खुराफात तल्खियों में गुजार दी उमर,

जिंदगी सदा ना रहेगी हद पार ना कर,


आओ मेरे दोस्त गले लगो और लगाओ,

वक्त की दौलत बेशकीमत है मुस्कराओ,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१७.०२.२०२२ १२.०५ पूर्वाह्न


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