शेर★समय की मांग!★

शेर

समय की मांग!


जिन्दगी गजब खूबसूरत किताब है,

आज का कल का सारा हिसाब है,


कहीं कहीं खामोश भी रहना सीख लो,

समय की मांग है घूट पीना सीख लो,


चेहरा आइना है वेबाक तेरी हर बात का,

सराफत का अदाबत का औकात का,


क्यों चाहेगा वह तू सिरमौर रहे जमाने में,

जमीन खिसक जाती है तेरे मुस्कराने में


हुजूम का हिस्सा बनोगे तो खो जाओगे,

भीड़ से निकल परख तब जीत पाओगे,


चाहते हैं बहुत दिन से तेरा बजूद मिटे,

उनकी आंखों से खौफ का साया हटे,


जो तुझे नहीं चाहते उन्हें दरकिनार कर,

मंजिल पर पैनी नजर रख इंतजार कर,


खिलाफ कितने भी रहें खौफ मत खाना,

जंग जारी रहे जीत की लौट मत जाना,


रिश्तों की डोर महीन धागों की मेहरबानी है,

प्यार जज्बात हालात अनकही कहानी है,


जज्बात में दिल की नरम नज्म ना बोल देना,

सामने बहरूपिया हो तो दिल ना खोल देना,


जुबान है तो बोलना शुरू कर दो मेरे

दोस्त,

बेजुबान चाबुक के बाद भी उफ नहीं

करते,


तौबा तौबा उस गली उस घर उस शहर 

से कर,

जहाँ जज्बात हालात का मखौल उड़ाया

जाए,


बहुत भारी कीमत अदा करोगे ईमानदार

होने की,

बदलते दौर ईमान को बूटों पर तौलने का

रिबाज है,


जिसकी रहमत से चल रहा हैं सारा जहान,

वही रग रग में रम रहा है खबर कर इंसान,


रूठते रहो बेशक कोई बात नहीं,

टूटने की बात जिंदादिल नहीं करते,



शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०५.०३.२०२२ ०८.५७ पूर्वाह्न














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