★सत्य क्या है?★
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सच में! सत्य बड़ा वक्र होता है।
जो दिखता है वो सच नहीं है और जो नही है वह सच दिखता है! जैसे शरीर औऱ आत्मा शरीर दिखता है जो झूठ है आत्मा चिदानंद मय है चिरस्थायी है अमर है अविनाशी है तदपि वह दृष्टि से परे है कोई कोई विरला विज्ञपुरुष ही इसे जान पाता है।
आइए समझते हैं हम अवगत हैं हमारा शरीर म्रत्यु के बाद भी बना रहता है जब तक कि हम उसकी अंत्येष्टि ना कर दें लेकिन उसकी गति स्थिर हो जाती है.वह आपका अपना ही तो है जिसे आप माँ,बाप,भाई,बहिन,पुत्र आदि आदि बंधनों से बांधते आये हो वह तो वही है।
लेकिन जो दिख नहीं रहा था या यूं कहें जो शरीर में जान फूंक रहा था वह लोपित हो गया है शरीर से,लेकिन आपका जिस शरीर से मोह था वह तो निंद्रा मगन है आपके समक्ष है उसे जगाओ,स्नान कराओ,भोज्य पदार्थ परोसो,घर में प्रवेश दिलाओ,उसके शयन कक्ष में विश्राम कराओ लेकिन नहीं कर पाओगे तुम बहुत चतुर हो तुम्हारा ना इस शरीर से मोह था ना उससे तुम्हें तो मात्र अपने सुख की प्रतिपूर्ति करने वाला आश्रय चाहिए था तुम उसे चाहते ही नहीं थे शायद!
सदा से जिसे अपना मानते आये हो अब क्या हुआ जिसे आपने पालापोसा साथ रहे वही तो आज आपके सामने निस्तेज पड़ा हुआ है उसे क्यों नही संभालते!
कितनी विडंबना है जीवन की जिसको हमने कभी देखा नही उसके लिए रो रहे है जो देखा उसे अग्निदाह/पृथ्वीदाह करने की तैयारी में है। क्या है ये सब?
विचार कीजिये हमने कभी किसी की ध्वनि/आवाज को देखा है कदापि नहीं। किन्तु फिर भी वह हमारे आसपास ही विधमान है इसके वाबजूद भी हम उसको नही देख पाते.वैसे ही जैसे कोई मदांध ये नहीं समझ पाता कि वास्तविक सत्य क्या है जो दृष्टि के समक्ष है वह सच है या जो आंखों की पकड़ से दूर है वह सच है विचार करना पड़ेगा?
क्योंकि हम अपने अंदर झांकना ही नहीं चाहते चल पड़े हैं एक ऐसे मार्ग की ओर जो अस्पष्ट सा है.आइए परखते हैं निरखते हैं हम क्या हैं हम वास्तविक में क्या हैं कितना अपना है कितना सपना है?
चलो उस मार्ग पर चलते हैं जहां प्रेम करुणा सामजंस्य हो जहाँ कोई किसी से बैर ना करे सब एक दूसरे की मंगल कामना करें घमंड के दावानल में झुलस रहे लोगों के साथ भी सहज होने की कोशिश करें लेकिन आत्मसम्मान को जानबूझकर चोट पहुँचायी जाए तब परशु सहित बाबा परशुराम की तरह प्रतिकार करें दुर्वासा सा कोप उर में रखें लेकिन सरल के लिए सदा शीतल रहें यही आज की मांग हो सकती है।
दया का दान करें लेकिन दुष्ट को दया दिखाई तो कभी भी सिर ना उठा पाओगे!
आत्म सम्मान हेतु सदैव सजग रहें सावधान रहें.सत्य को समझने का प्रयास करें किसी बुद्ध की शरण जाएं भृमित ना हों।
फिर एकबार जो दिख रहा है वह है नहीं!जो है वह नेत्रों की पकड़ से दूर है!विचार कीजिये आनन्दित रहिए सामजंस्य बनाये रखिए।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.०३.२०२२ ८.४८ पूर्वाह्न
(१०.०३.२०१८ को लिखा गया लेख)