कविता
★मातृशक्ति प्रणाम★
……..
बूढ़ी माँ दहलीज पर देखे घर की ओर,
पांच ज्याये पूत अब कौन ख़िलाबै कौर,
कौन ख़िलाबै कौर वक्त ढलता ही जाता,
हुआ घना तम जोर पास कोई ना आता,
……..
साँझ ढली आयी निशा पूछे कोई न बात,
बूढ़ी माँ मग जोहती कैसे काटे रात,
कैसे काटे रात बदल गयी मेरी सूरत,
बृद्धाश्रम भरते गए मिटे सकल जज्बात,
………
माँ को जिसने कर दिया दर्द दर्द बेजार,
कितना भी ऊंचा दिखे निश्चित होगी हार,
निश्चित होगी हार समझ पाओ तो मानो,
नारी है नारायणी दिव्य ज्ञान पूरित भंडार,
……..
नारी का सम्मान नहीं वहां देव नहीं आते हैं,
मुरझाती है धरा अंकुरित बीज न हो पाते है,
करो शपथ हम करें सदा नारीशक्ति का मान
सदा रहे पूजित देवी सी भारत भूमि महान,
…….
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०८.०३.२०२२ १२.४८ अपराह्न
…….