★प्रश्न जटिल है?★
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प्रश्न जटिल पर पूछ रहा हूँ तुमसे प्यारे,
इतने क्यों मजबूर हुए क्यों दिखते हारे हारे,
क्या हुआ ये क्यों हुआ मिटा प्रेम स्नेह,
उत्तर गर दे सको तो देना मित्र सहोदर सारे,
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यूं हीं घनघोर सन्नाटे की आहट क्यों है,
सहोदर ही सहोदर से आहत क्यों है,
सिसकियों की अनकही गूँज बढ़ती
जा रही है,
ये उन्माद ये हनक ये अदाबत से तर
जहाँ क्यों है?
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बताओ दहलीज के अंदर दरारें क्यों हुई,
सुनाओ आपसी कलह रन्ज रारें क्यों हुई,
समझने की कोशिश क्यों नहीं होती मित्र,
पिता के आंगन में ये दीबारें क्यों हुई?
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वह गलत वह गलत पुकारते रहे,
प्यार जज्बात उमंग रोज हारते रहे,
खून से खून की रोज तकरारें बढ़ती गयीं,
घर की बात घर में ही सुलझ सकती थी,
ये दहलीज की बात जगजाहिर क्यों हुई ?
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इस बेरुखी को तोड़ कर रिश्ते बनाइए,
आदमी हो गर तो आदमी नजर आइए,
संवाद है तो संवेदना का स्वर रहेगा सजीव,
उठो बढ़ों गले मिलो प्यारे दूरियां मिटाइए,
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आदमी आदमी से खफा ही क्यों होता है,
हांफते हांफते जिंदगी बोझ सी क्यों ढोता है
वज़ह तलाशो कुछ नजदीकियां बढ़ाओ,
अरे मित्र दो पल की जिंदगी है समझ जाओ
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१५.०३.२०२२ ०३.५४ अपराह्न
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