व्यंग्य★जातिवाद विष!★

                


   व्यंग्य

जातिवाद विष

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एकतरफ जातिमुक्त समाज चाहिए,

दूसरी तरफ जातिप्रमान पत्र लाइये,

अरे भैया बताओ ये कैसी व्यवस्था है!

लगता है जातिवाद में गहरी आस्था है!

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जातिसूचक शब्द बोलने पर होती जेल,

कागजों पर खुला जातिवाद का नंगा खेल, 

भैया जाति सिद्ध करने को विभाग तय है,

तुम महान लीडर हो तुम्हारी सर्वदा जय है!

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देश की उन्नति में ये कोड़ है भैया जान लो,

तुम भी कम पोषक नहीं खादीधारी मान लो

घातक है उन्नत देश के लिए ये जातिवाद,

ले आओ कानून नया मिटा दो जातिवाद!

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क्या कोई भी ऐसा दल नहीं जो जातिवाद

मिटा पाए,

जाति प्रमान पत्र पर शिकंजा कस दे रोक

लगा पाए,

उम्मीदवार के शपथपत्र से जाति हटा कर

दिखाओ,

बिना जाति प्रमान पत्र के एक नौकरी तो

दिलाओ!

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उम्मीदवार को टिकट उसकी जाति देख

कर देते हो,

चालाक हो कागजों में कुछ मुंह से कुछ

कहते हो,

नौकरियां जाति के आधार पर आबंटित

हैं देश में,

जातिवाद फैलाने बाले बैठे हैं रहनुमा के

भेष में !

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हमें कोई दिक्कत नहीं इस परिपाटी से,

कागज पर द्वार पर लिखी हुई जाती से,

लेकिन ये विषबेल गले को काट देगी,

समाज में व्याप्त भाईचारे को बांट देगी,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

३१.०३.२०२२ ०४.२० अपराह्न

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