कविता★कांटों से दोस्ती!★

 

कविता

कांटो से दोस्ती!

कभी कभी बदल जाते हो घने घने,

कभी कभी हो जाते हो उदास अनमने,

कभी कभी उड़ेल देते हो प्यार ही प्यार,

कभी कभी हो जाते हो बिल्कुल जारजार,


कभी कबूल नहीं होता एक भी फूल,

कभी चाहते हो अपने लिए शूल ही शूल,

किस मिट्टी के हो "तुम"अलग ही बने हो,

चमकता मग छांड चाहते हो धूल ही धूल,


कांटों से दोस्ती कभी कभी खूब करते हो, 

कभी कभी रेशम की दोस्ती छोड़ हंसते हो,

कौन हो क्या हो किस तरह समझूँ तुम्हें,

कभी अपमान के बाद भी खूब चहकते हो,


कभी जलाते हो अरमान ख्वाब उनके लिए,

कभी कभी जिया करो यार खुद के लिए,

उनको तेरी खुद्दारी से क्या करना समझ,

वे तो सिर्फ जीते है यार खुद के लिए,


कभी बादल कभी ओस बन बरसते हो,

कभी कभी जेठ की धूप बन खूब जलते हो,

कभी तो वसन्त बन जाया करो मेरे अजीज,

क्यो दिल जलाते हो अपना क्यों दहकते हो,


जमीर जिंदा रहे ठीक बात है मानता हूँ,

तुम्हें लोग इस्तेमाल करते हैं जानता हूँ,

फिर भी तुम क्यों नहीं संभलते सुधरते,

तुम क्या हो कौन हो मैं पहचानता हूँ,


हवा का रुख देखकर जियो प्यारे,

कुछ कहो कुछ घूंट घूंट पियो प्यारे,

कलम की पुकार है अब भी सबक लीजिए,

सुकून के वास्ते एक दिन तो जियो प्यारे,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०७.०३.२०२२ ०२.१४ अपराह्न




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