व्यंग्य★नीबू की शिकंजी★

 

व्यंग्य

नीबू की शिकंजी

पत्नी जी बोलीं,

शहद सी मीठी बोली,

अजी सुनिए तो,

कुछ इधर भी नजर उठाइए,

जरा लाजाजी पास आइए,

कल नीबू लेते आना,

साथ ही दही जरूर लाना,

और ये राशन की सूची भी ले जाइये,

जो लिखा है वह पूरा का पूरा लाइये,

डिमांड पत्र पत्नी जी ने मुस्कराते दिया,

सहमे से पतिदेव से मांग पत्र लिया.


देख रहे हो आकाश से आग बरस रही है,

बिटिया कई दिनों से लस्सी को तरस रही है

ठीक है भागवान ले आऊँगा,

तब ही मुंह दिखाऊंगा,

पतिदेव जब ऑफिस से लौटे,

अधमरे से सन्न से,

टूटे फूटे कुटे अप्रसन्न से,

कुछ पिले पिलाये खिन्न से,


ठेल वाले से बोले,

नीबू दीजिये एक पाव,

अरे भैया क्या है आज का ताजा भाव,

सब्जी विक्रेता बोला दांत निपोरकर,

कुछ मस्ती के मूड़ में मुंह खोलकर,

पौने तीन सौ रुपया किलो हैं साहब,

अरे क्या बात करते हो जनाब,

इतनी मंहगाई

तुमने खूब अंधी मचाई,


ठेल वाला बोला आप नहीं ले पाओगे,

नीबू सुनोगे पर सिंकजी ना पी पाओगे,

आम आदमी मन ही मन सोचता रहा,

ले जाना तो पड़ेगा,

नहीं तो पत्नी जी का खूब पड़ेगा,

लिए तो ठीक ना लिए तो, 

भागवान करेगी खूब ठुकाई,

बहुत गुस्सैल है पापा कसम घरबाई,


आम आदमी ने मन मसोसा

आज फिर सरकारी नीतियों को कोसा,

ले लिए पचहत्तर के पांच सात नीबू,

चलो ठीक है शिकंजी पी लेगी सीबू,

जैसे ही किक मारा स्कूटर चालू ना हुआ,

धक हुई कलेजे में ये क्या हुआ,

टँकी खोली तो पेट्रोल बोल गयी,

कॉमन मैन की पोल खोल गयी,

धक्का मार कर पेट्रोल पंप तक लाये,

सौ रुपये में एक लीटर से कम भरबाये,


दही खरीदूं या नहीं,

अपनी जिंदगी दही बन गयी,

कोई भी बरगला जाता है पेल जाता है,

वोट पाकर कलफ लगा मुस्कराता है,

फिर वही सयाना,

महंगाई डायन का गिफ्ट दे जाता है,


तेल साबुन चीनी चावल सब का पूछा भाव,

कॉमन मैन का गुस्सा फूटा आया भारी ताव,

अब हमारी जेब और हिम्मत डोल रही है,

ये तो सरेआम पोल खोल रही है,

किस सरकार को पास कहूँ

किसको बोलूं फेल,

अजब निराला स्वप्न है,

राजनीति का खेल,


चलो अब हम भी आंदोलन करेगें,

निराहार रह कर सत्याग्रह करेगें,

फिर नेताजी दौड़े दौड़े आएंगे,

नकली ही सही लेकिन गले लगाएंगे 

शायद फिर वही माननीय

हमें दो गिलास शिकंजी पिला जाएं,

नकली ही सही पर पास आ जाएं,

सुनो कॉमन मेन ठगा जाता रहा है,

ठगा ही जाता रहेगा,

उन्हें पता है ये कब तक चिल्लाएगा.

किस से दर्द कहेगा.


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

११.०४.२०२२ १०.३८ अपराह्न



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