★सुन रहे हैं कर्णपट★
है डगर दुष्कर मगर ठहरा नहीं हूँ,
सुन रहे हैं कर्णपट बहरा नहीं हूँ,
आ रहा है समझ सब पर शांत सा हूँ,
चल पड़ा हूँ जिद लिए हारा नहीं हूँ,
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तू भी अपना मार्ग खुद ही देख ले,
चल पथिक अपना सबेरा देख ले,
आ रही है कटक तम की भान रखना,
हे मनुज तू स्वयं चलना सीख ले,
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छत्र छाया में नहीं पलना कभी,
गैर के कदमों से ना चलना कभी,
लिख इबारत स्वयं अपनी मित्रवर,
खौफ से भयभीत मत होना कभी,
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ठीक है उसकी कहानी स्वर्णमय है,
तू भी तो नर है विजय का तेजमय है,
सूर्य की किरणें नहीं रुकती कभी भी,
कर शपथ आगे कदम कर जीत तय है,
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तू भी तो है आदमी फिर डर रहा क्यों,
जिंदा है पर रोज घुट घुट मर रहा क्यों,
जा खड़ा हो सामने लेकर शपथ सुन,
जीत है निश्चित फिक्र तू कर रहा क्यों,
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हो अगर भारी बबंडर आँधियों का घोर,
तू नहीं रुकना मुसाफिर देख करके शोर,
विजय कदमों में गिरेगी वचन सच है,
कर शपथ होकर निडर जीत है हर ओर,
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जब तलक संघर्ष मय जीवन ना हो,
दुष्कर डगर की रोज नव सीवन ना हो,
जिंदगी तपती रहे लेकिन ना रुकना हारकर,
रौंद दे जो प्रेम करुणा मित्र ये जीवन ना हो,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१४.०४.२०२२ ११.३३ पूर्वाह्न