★प्यार छोड़ आया हूँ★
(1)
निशान किस किस पर छोड़ आया हूँ।
मुसाफिर हूँ अदद प्यार छोड़ आया हूँ।
(2)
वे फिराक में तो थे दिल तोड़ दें इसका।
उनके सामने बस अदब छोड़ आया हूँ।
(3)
जिंदगी दिलरूबा है मगर वफादार नहीं।
मासूका की बाहों में हार छोड़ आया हूँ।
(4)
दिल्लगी करो मगर दिल ना दुखे मेरे दोस्त।
उस गली में सुकून ए बहार छोड़ आया हूँ।
(5)
अगर नजीर बन जाये जिंदगी तो बात बने।
इसी बावत सराफत हर ओर छोड़ आया हूँ।
(6)
दौलतों के अंबार थे उनके पास बखूब।
उनकी पेशानी पर लकीर छोड़ आया हूँ।
(7)
दरख़्तों को वे काटते रहे गुरूर में रोज।
जमीं के वास्ते पानी और पौध छोड़ आया हूँ।
(8)
तालीम की कीमत बहुत ऊँची हो गयी इस दौर।
मैं इस दौर अपनी कलम मुफ्त छोड़ आया हूँ।
(9)
सियासी चक्र में यूं ही फंसता गया आदमी।
मैं उनकी आंखों में चमक छोड़ आया हूँ।
(10)
खबर उनको है उसकी मुफलिसी की।
उनके सामने जिंदा जमीर छोड़ आया हूँ।
(11)
वह बिक गए नोटों के सामने बेआबरू हो।
खुद्दारी ईमान की मिशाल छोड़ आया हूँ।
(12)
अदालत बिकती रही आँखों के सामने।
फ़ख़त इंसाफ की गुहार छोड़ आया हूँ।
(13)
सिलसिला रुकता ही नहीं नाराजगी का।
इंसान को शान से खुलेआम छोड़ आया हूँ।
(14)
गले मिलना ही नहीं चाहता वह जाने क्यूँ।
मैं उनको चमन के बीच यार छोड़ आया हूँ।
(15)
खुराफातें उनकी मिटती ही ना थी कभी।
मैं तो चुपके से इश्क द्वार द्वार छोड़ आया हूँ।
(16)
किस किसकी सुनूं किस किसको सुनाऊं।
इक गीत मस्ती का हर ओर छोड़ आया हूँ।
(17)
गले लगो और गले लगाओ बांह भर कर।
अदद प्यार वफ़ा का पैगाम छोड़ आया हूँ।
(18)
लिखूँ कितना अपने और तेरे वास्ते अजीज।
मैं तो बस कागज और कलम छोड़ आया हूँ।
(19)
जिंदगी का क्या पता कब साध दे अपना निशाना।
बस यही पड़ा रह जायेगा दोस्त सब तेरा खजाना।
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१५.०४.२०२२ १२.१४ अपराह्न