व्यंग्य // चिंगारी ! //


व्यंग्य

// चिंगारी! //

सावधान !

रहो प्यारे सावधान !

कौन गलत कौन सही !

खुदबखुद पहचानो,

नफा नुकसान अपना जानो,


वतन तेरा भी है मेरा भी 

घर तेरा भी है और मेरा भी,

चिंगारी भड़की !

जद में मेरी भी झोपड़ीं आएगी, 

और तेरी भी दोस्त !


चिंगारी को हवा देने वाले,

नहीं खिलाएंगे पेट भर निबाले,

लूट डालेंगे!

सब कुछ तेरा भी और मेरा भी,

इनका इरादा समझो विचार करो,

जिंदा रहे इंसानियत आदमी से प्यार करो,


ये इंसान जैसे दिखते हैं मगर!

ये इंसान तो नहीं हो सकते,

इनका काम है लूटना, 

इंसानियत,

दौलत,

जिस्म और आबरू !

बेटी तुम्हारी भी है !

और हमारी भी !


खुशियां बांट सकते हो,

तो बांटिए जनाब,

ये दौर इमोशनल नहीं,

बराबर होता है सारा हिसाब,

इंसानियत जिंदा है 

जब तक आदमी जिंदा है,


विचार करो,

फिर कदम धरो,

तेरी करतूतों से ये जमीं,

शर्मिंदा ना हो जाए,

आदमी आदमी रहे,

आदमियत ना मर जाए,

वह मजहब मजहब ही नहीं!

जिसकी अवधारणा प्रेम बन्धुत्व की नहीं,


तू फूंकने को सज्ज है,

घर हमारा!

बच कहाँ पायेगा,

प्यारे दर तुम्हारा,

ये हमला मामूली नहीं हो सकता!

ये प्रहार है आपसी भाईचारे पर,


आपसी रिश्ते नातों पर,

दिल के महीन जज्बातों पर,

सौहार्द पर,

व्यवहार पर,

कुछ बहरूपिया घूम रहे हैं,

यही हैं अमानवीय चेहरे,

जो जलाने की फिराक में हैं,

रिश्तों को मिटाने की ताक में हैं,


तुम अपने हाथ इन्हें,

मत दे देना कहीं,

तुम अपना साथ इन्हें,

मत दे देना कहीं,

वरना!फंस जाओगे,

खाली हाथ नजर आओगे!

वतन की हवा बिगड़ने ना पाए,

इंसानियत रहे कायनात मुस्कराए,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१८.०४.२०२२ ११.५२ पूर्वाह्न





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