गजल★दाग चेहरे पर !★

 

गजल

दाग चेहरे पर !

(1)

मुंह पर तो मुस्कान रखते हो शहद सी।

पीठ पीछे चुगलियों का शौक क्यों है।

(2)

हैं लगे कुछ दाग चेहरे पर तुम्हारे दोस्त।

उनके दागों पर नजर क्यों टिक गई है।

(3)

हो रही तारीख पर तारीख पर हर पैरबी।

बिक गया घर खेत घूरा बात हैरत की रही।

(4)

क्यों गाय भूखी है घास के एक कौर को। 

झबरा कुत्ता पाल रक्खे हो बड़े ही रौब से।

(5)

दाबतें करते रहे तुम रोज चौराहों पै जाके।

है बगल में पेट भूखा आदमी रहता कोई।

(6)

बस जिये दारू पिये कमीशन की आस में।

आगे पीछे हाँ हुजूरी में रहे मंत्री निवास में।

(7)

साहब को भी खौफ है नौकरी काली न हो।

इसलिए सब देखकर भी आंख ने देखा नहीं।

(8)

मौन में भी बोलते हो कुछ अलग आबाज में।

उंगलियों पर खेल सारा इक इशारा बहुत है।

(9)

तुम्हारी अपनी रूह तुमसे पूछेगी सवाल।

कब कहाँ जिंदा रहे कुछ बोलिये जनाब।  

(10)

सिर्फ साँसों का चलना जिंदा होना है नही।

इंसान का यूँ मौन रहना बात कहता है कई।

(11)

उनके हौसले बुलंद हुए गले पर चाकू रखा।

मालूम है उनको ये आदमी अब जिंदा नहीं।

(12)

जिंदा कौमें खौफ से डरती नहीं है जान लो।

है नहीं कुछ भी फिक्र मौत है सच मान लो।

(13)

झुको उनके सामने जो सचमुच शरीफ हो।

रुआब हनक के सामने झुकना ठीक नहीं।

(14)

सबको मालूम हैं अपनी अपनी खामियां।

कहीं उजागर हो न जाएं खूब इसपर जोर है।

(15)

ये आदतें तुमको ना कर दें बहुत मगरूर।

छोड़ दो तुम आज से ही झूठ,लूट ये गुरूर।

(16)

कर रहे हो बात कोरी कौन मानेगा सही।

जो कहा वह कहां किया बात कोरी ही रही।

(17)

उनकी बांहों में रही जब तक रही सुर्ख सी।

बदल डाली जूतियों सी आदमी कैसे कहूं।

(18)

लूटते हो रोज मिल कर रिश्वतें लेकर उन्हें।

वह रहा मजबूर आगे हश्र तेरा क्या कहूं।

(19)

वह ईमान रखना भी चाहे मगर तालाब में घर है।

खौफ है उसका उधर भी रह रहा भारी मगर है।

(20)

अपनी माँ को साथ रखने की रही हिम्मत नहीं।

वृद्धाश्रम में जाके बन रहे तुम आदमी।

(21)

उनके घर की बात तुम करते रहे यूँहीं रोज रोज।

अपनी भी सच बात कह दो तब चलो ये ठीक है।

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२०.०४.२०२२ ११.१७ पूर्वाह्न


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