गजल★बात छोटी है नहीं !★


 गजल

बात छोटी है नहीं !

बँट गए खलिहान घर शिक़वा नहीं कुछ।

मगर ये दिल क्यों बँटे ये बात छोटी है नहीं।


रहते थे जब साथ अपने थी उम्मीदें खूब। 

रिश्ते बोझिल क्यों हुए बात छोटी है नहीं।


गमगीन है दहलीज देख रिश्तों में गिराबट।

खून ही दुश्मन बना क्यों बात छोटी है नहीं।


थी कभी ताकत उसेअपने ही दाएं हाथ की। 

बांह तो खुद झटक बैठा बात छोटी है नहीं।


पूछते थे रोज मिल हालात आकर पास वे।

पास आने से हिचक क्यों बात छोटी है नहीं।


तेरी पेशानी पर दिखती हैं लकीरें टूटने की।

क्यों छिपाता फिर रहा है बात छोटी है नहीं।


खून के रिश्तों में बढ़ती जा रही यूँ तल्खियां।

अब नहीं वह पास आते बात छोटी है नहीं।


आ गए गर राह में जब सामने अपने सगे।

पर उन्हें ना नजर आए बात छोटी है नहीं।


होगए अपने जुदा गलतफहमी की वजह से।

गलतफहमी क्यों बढ़ी ये बात छोटी है नहीं।


बाँट लेते थे निबाला कभी मिल के साथ में। 

कौर से जो नेह छिटका ये बात छोटी है नहीं।


पूछती दहलीज उनसे लोग क्यों होते खफा। 

हैं खफा खुद से ही क्यों बात छोटी है नही।


ना उधर से ना इधर से बात होती है सुनो।

बढ़ रही क्यों तल्खियां बात छोटी है नहीं।


तुमने समझा वह गलत उसने समझे तुम।

गलत क्यों बढ़ता गया बात छोटी है नहीं।


गैर अपने लग रहे हैं लग रहे अपने जुदा।

दिल मरे जज्बात मर गए बात छोटी है नही।


वक्त है कुछ वक्त है हालात से कुछ सीख।

यूँ नहीं सह पायेगा सब बात छोटी है नहीं।


हार कर मत बैठ जाना मार्ग दुष्कर देख।

तोड़ दे सारे मिथक अपनी जवानी देख।


सिसकियां लेता रहा यूँ ही तड़प कर रातभर।

बगल में था कोई सोया पर रहा वह बेखबर।


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२४.०४.२०२२ ०४.४२ अपराह्न



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