व्यंग्य★रोजगार बहता मिला !★


व्यंग्य

रोजगार बहता मिला !

मिला सभी को पेट भर अन्न मुफ्त का यार,

रोजगार बहता मिला गली गली घर द्वार,

खूब घटी सब कीमतें जनता मालामाल, 

जनता समझे जीत है मिली करारी हार !,


खाने का गर कौर भी मांग खिलाये चार,

सोच समझकर कीजिये जापै आप विचार

अपना ही उपहास है बोलें किससे बात,

रोजगार का हश्र तुम देखो नयन उघार,


धंधे चौपट हो गए मंहगाई की भीषण आग,

कोरोना फिर आ गया रे जाग सके तो जाग,

घुट घुट फिर घुट जाओगे दबा मिलेगी नांय,

मास्क लगा दूरी बना जाग प्यारे जल्दी जाग,


बढ़ते बढ़ते बढ़ रहे रोज मूल्य और दाम,

पिसता घिसता आदमी मांगे किससे काम,

तनखाएँ आधी हुईं खर्च खड़ें मुंह फाड़,

जय जय जय सरकार की खूब कमाया नाम,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२६.०४.२०२२ १२.२३ अपराह्न




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