★जांच की फाइल !★
खलता है उन्हें,
पता है तुम्हें,
तुम जब जब सच उकेरते हो,
इनकी बखिया उधेरते हो,
इनकी ?
अरे नहीं !
इनकी नहीं इनकी करतूतों की,
बेशकीमती बंगला गाड़ी जूतों की,
वे तिलमिला जाते हैं,
खौल जाते हैं,
क्यों ?
इसलिए
क्योंकि तुमने सच लिखा !
जो व्याप्त है सिस्टम में वही लिखा,
दलाली अभी भी प्रतिबंधित नहीं है,
वेशक वह कहीं अनुबंधित नहीं है,
लेकिन फिर भी,
वह कमाल कर रही है,
एक को कंगाल,
दूसरे को मालामाल कर रही है,
इनकी जांच करेगा कौन ?
प्रश्न सुनते ही साहिबान हुए मौन,
जिसकी बेसिक पे पच्चीस तीस हजार हो,
उसका आशियाना करोड़ों में गुलजार हो,
ये क्या केवल तनखा से संभव है ?
जानते आप भी हैं श्रीमान ये असंभव है,
महंगी पर महंगी गाड़ियां,
मेडम जी की बेशकीमत साड़ियां,
कोरी तनखा से नहीं आ पाएगीं,
मधुशाला घर नहीं ला पाएगीं,
सब जानते हो आप भी,
मुलाजिमों की कारगुजारियां,
सिस्टम में व्याप्त कोड़ सी बीमारियां,
आपकी जांच इन्हें ना जांच पाएगी !
क्योकिं जांच की फाइल इन्हीं के,
किसी वरिष्ठ योग्यतम गुरू के पास आएगी,
बिल्कुल पाक साफ निकलेगीं फाइलें,
ये आपको भी पता है और हमें भी,
ये सबके सब मिले मिलाए मस्त हैं,
इन सरकारी जांचों के अभ्यस्त हैं,
जिसने कभी रिश्वत ना ली हो,
ना कभी दी हो,
वही ये जांच कर पायेगा,
अन्यथा !अन्यथा ! अन्यथा !
ये अभियान निष्पक्ष नहीं हो पायेगा,
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२७.०४.२०२२ ०३.२४ अपराह्न