💐 कुछ सुनो! 💐
तुम गलत के सामने खौफजदा क्यों हो,
मैं नहीं मानता अजीज तुम अभी जिंदा हो !
हवा का रुख कुछ अलग अलग दिखता है,
खबर है अब आदमी बहुत कम दिखता है !
सिफारिशों का दौर खूब चलता है अब भी,
कामयाबी में इसका खूब असर दिखता है,
बदला नहीं है कुछ भी फाइलों का खेल,
लिफाफा मिला तो मेल नहीं तो बेमेल !
हां अभी भी सिफारिश की बादशाहत है,
देख लो आंख उठाकर यकीं हो जाएगा,
वह दिखाता रहा रुआब अपने ओहदे का,
वक्त के साथ ओहदा गया तब होश आया,
मिलो सबसे और उनकी फरियादें सुनो,
कुछ गुनो कुछ सुनो फिर सही फैसला करो,
जिंदगी ओ जिंदगी तुझे कितना जानने की
कोशिश करूं,
हर रोज नए पन्ने ख्वाब, दबाव और चालों
से सामना,
कौन नहीं चाहता कि उसका बजूद हो
जमाने में,
ये हौसले,कलेजे के बिना मुमकिन नहीं
दोस्त,
बस जिए औऱ रुखसत हो गए बिना जिंदा
हुए,
तुझे आदमी कहने में "मैं" तो यकीन नही
रखता,
उसे भी खौफ है कहीं कोई सामने ना आ
खड़ा हो,
इसी वास्ते वह सिपहसालारों के साये में
बसर करता है,
उसूल गर सख्त हों तब भी नागबार गुजरते हैं
जमाने को,
उसको लगता है ये कभी गिड़गिड़ाकर झुकता
क्यों नहीं,
वह आफताब से उसकी तपिश से जंग
चाहता है,
शौक है उसे हर गलत आदमी से जंग
चाहता है,
तुमने बहस सही की फिर भी उसे चुभती
है ये अदा,
उसे बोलने बाले नहीं चाहिए इस दौर भी
शायद,
वह मना भी नहीं करता और करता भी
नहीं काम,
लिफाफा कितना भारी है इसपर यकीन
रखता है,
जुल्म के सामने कब तक झुकोगे बताओ
तो जरा,
खौफ के साये में जिंदगी खुशगवार होती
नहीं दोस्त,
साजिशें होती रहेगीं उम्र भर दोस्त मलाल
मत करना,
तुम अपना सफर पूरी साफगोई शिद्दत के
साथ चलना,
तुम बोलना जरूर गलत के सामने बेखौफ
सदा सदा,
मुर्दों में कहां जुर्रत कि वे बोल भी पाएं यूँ
ही कभी,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०४.०४.२०२२ ०८.१५ पूर्वाह्न