कविता★पहचान लो मजदूर हूँ ।।★


पहचान लो मजदूर हूँ ।।

मैं शांत हूँ,

लेकिन क्लांत हूँ।

मैं कभी रुकता नहीं हूँ,

आँधियों के सामने झुकता नहीं हूँ।


मैं भी थकता हूँ सुनो,

लेकिन तुम्हें दिखता नहीं हूँ।

मैं नजर से आज भी क्यों दूर हूँ,

देख लो पहचान लो मजदूर हूँ मजदूर हूँ।


उस भवन अट्टालिका से पूछ लो,

सड़क की तपती जमीं से पूछ लो।

नहर नदियां पुल गवाह मिल जायेंगे,

सूर्य की तपती किरण से पूछ लो।


मगर सत्ता की नजर कमजोर है,

फाइलों में नीतियों का शोर है।

जिंदगी चलती रही यूँ ही अथक,

कागजों पर जोर है बस जोर है।


हो दर्द पीड़ा रुग्णता झुक ना सकूँगा,

हो कोई भी मार्ग पर रुक ना सकूँगा।

मैं तो हूँ खुद्दार,ना मजबूर हूँ,

देख लो पहचान लो मजदूर हूँ मजदूर हूँ।


मेरी मेहनत ही मेरी पहचान है,

मैं भी हूँ इक आदमी मेरे भी अंदर जान है।

मगर लगता हूँ तुम्हें,मैं तो पत्थर का बना,

है गवाह सारा जहां गवाह हिंदुस्तान है।

गवाह हिंदुस्तान है।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

०१.०५.२०२२ १२.०४ अपराह्न

(मजदूर दिवस पर विशेष)

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