व्यंग्य।।विधायक जी का काफिला।।

       


 ।।व्यंग्य।।

।।विधायक जी का काफिला।।

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विधायक जी क़ा काफिला,

दनदनाता सड़क पर धूल उड़ाता चला ,

गाड़ियां ही गाड़ियां चारपहिया दोपहिया,

जिंदाबाद की गूँज जय नेता जी जय भैया,


शायद ही किसी के पास कागज पूरे हों,

मजाल किसकी किसी सिग्नल पर घूरे हों,

वह सड़क नियमों को धता बता रहे थे,

भरपूर विधायकी का रौब दिखा रहे थे,


उनकी कार पर काली फ़िल्म चढ़ी थी,

रसूखदार कार लंबी और बड़ी थी,

हमें लगा ये तो माननीय बन गए हैं,

शायद सुधर गए होगें !

अनुमान गलत निकला,

विधायक जी कहाँ सुधरने वाले थे !


एक बार फिर लगा अरे नहीं !

अब ये तो कानून तोड़ेंगे नहीं,

ये तो असमाजिकों से बेलगाम दौड़ेंगे नहीं,

लेकिन मेरा अनुमान क्षतिग्रस्त हो गया,

उनके सामने सिस्टम अस्तव्यस्त हो गया,


छुटभैयों की अपार भीड़ किसी के पास चारपहिया,

किसी के पास चार सवारियों के साथ दो पहिया,

क्या कहा हेलमेट लगाए थे?

अरे नहीं सड़क नियमों की धज्जियाँ उड़ाने आए थे

शीट बेल्ट नदारद हेलमेट नदारद,

अधिकांशतः नियम नदारद !

 

नियमों को जानबूझकर तोड़ा गया,

काफिला पुलिस लाइन की ओर मोड़ा गया,

सड़क नियमों को तार तार कर गए,

हाय रे यातायात प्रबंधन ! 

सरकारी व्यवस्था को धूलधूसरित कर गए,

इसी सड़क से विधायक जी घर गए !


ना हेलमेट,

ना निर्धारित सवारी,

ना शीटबेल्ट,

ना गतिसीमा ना हॉर्न की सीमा तय,

हर ओर विधायक की जय जय ही जय,

किस मजबूरी में किस भय से,

इनके चालान ना कट सके,

आम आदमी ज्यादातर नियम से चलता है,

फिर भी उसी का चालान कटता है।


पता नहीं क्यों सिस्टम इनके सामने पंगु हो जाता है

मजबूर निरीह झुका झुका सा नजर आता है,

कुछ तो है जरूर कुछ तो दाल में काला है?

यहीं पर अमृत हैं यहीं जहर का प्याला है।


इस तरह के क्रियाकलापों से,

जनता के मध्य गलत सन्देश जाता है,

पता करो इसमें कौन गुनहगार किसकी खता है,

खैर कोई बात नहीं कलम को सब पता है।


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१०.०५.२०२२ १०.२२ अपराह्न






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