व्यंग्य
★"मिस्टर विकास"★
विकास मेरे पास आया मुस्कराया,
कैसे हो "लेखक जी" मस्त कट रही है,
मैंने हँसते हुए ज्वलंत प्रश्न दागा,
शर्म करो लिहाज करो"मिस्टर विकास",
वस्तुओं की मूल्यव्रद्धि सुरसा सी बढ़ रही है
तुम्हें लग रहा है जिंदगी मस्त कट रही है!!
सहमा सोचा फिर विकास बोला,
अपने ह्रदय के द्वार का पट खोला,
मेरा नाम फाइलों में वादों में भाषणों में,
बहुत उछाला जा रहा है रोज आ रहा है,
क्या धरातल पर विकास नजर आ रहा है?
मैंने कहा तुम अपनी दशा दुर्दशा स्वयं देखो,
अपात्रों को अन्न मुफ्त बांटा जा रहा है,
फिर वही अन्न बाजार में बेंचा जा रहा है,
लोगों को कामचोर बनाना ही विकास है,
मुफ्त देकर देश कर्जदार बनाना विकास है,
देशभक्त पिस रहा है कामचोर हँस रहा है,
क्या तुम इसे ही विकास मानते हो"विकास"
फिर मैंने एक और तीक्ष्ण प्रहार किया,
विकास जरूर हो रहा है"मिस्टर विकास",
अधिकारियों के यहाँ पंद्रह लाख छोड़िए,
घरों में करोड़ों करोड़ों रुपये मिल रहे हैं,
विकास की शौर्यगाथा में पुष्प खिल रहे हैं,
इससे ज्यादा विकास अरे ना बाबा ना!!
फिर मैं गुस्से से झल्ला कर बोला,
मिस्टर विकास तुम्हें कैद किया गया है,
अरे कहां बताइए विकास ने पूछा,
शायद फाइलों में लुभावने वायदों में,
तुम्हारे नाम पर वोट लिया जाता है,
जनता तुम्हें कोसती है नेता मुस्कराता है,
क्या मैं इनकी पाशों से मुक्त हो सकता हूँ,
विकास पशोपेश में चिंता में नजर आया,
मैनें कहा हो सकते हो कार्य दुष्कर है,
मानहानि का मुकदमा नेताजी पर कराइये,
मा.न्यायालय के समक्ष घसीट ले जाइए,
लेकिन तुम्हें तारीख पर तारीख मिलेगी,
तब कहीं इन पाशों से मुक्ति मिलेगी,
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१३.०५.२०२२ ११.४४ पूर्वाह्न