हकीकत देख लो !
कैसे बोलूं लिखूँ सब यहाँ खुशहाल हैं।
खुद हकीकत देख लो क्या हाल हैं।
एक बार अचानक दौरा कीजिये साहब।
इल्म रहे तेरे आने की भनक लग न जाए।
अगर दौरे की खबर पहले ही पहुंच जाएगी।
गुंजाइश नहीं हकीकत तुझे मिल पाएगी।
हकीकत जो है वह फाइलों से कोसों दूर है।
होशियार मुलाजिम हैं इनाम के हकदार हैं।
बदल दो निशान पहचान इसके उसके भी।
मगर तोहमत ना लगे इंसाफ हुआ ही नहीं।
सियासी जुबान सियासी दोस्ती टिकती नहीं।
अरे यार यहां खुद्दारी वफादारी दिखती नहीं।
असल में चोर कौन है साहूकार कौनसा है।
कम तो कोई भी सियासत में दिखता नहीं।
सियासी सरपरस्ती में चलती हैं दुकानें खूब।
बिना परमिट के भी पाबंद चीज बिकती हैं।
मजाल किसकी कि वज़ीर के बेटे को छुए।
झुक गया अमला भी सजदे अदब के लिए।
मुझे शौक नहीं है कि हवा के खिलाफ चलूं।
मगर बोलता हूँ जब बयार खिलाफ चले।
सबके सब हुकूमत के नशे में भरे दिखते हैं।
बेटियाँ चीखती हैं फ़क़त हिफाजत के लिए।
मैं तेरे खिलाफ नहीं हूँ ना कलम खिलाफ है।
उतार दो लिबास तुम ये सियासी लिबास है।
हिसाब किताब तुम्हारा भी बराबर नहीं लगता।
क्यों खौफ में आज भी गुनहगार नहीं लगता।
कलम क्यों डरे क्यों खौफ खाये तेरी बादशाहत से।
अरे दोस्त नीलाम होते है उसूल बड़ी सराफत से।
बाग पोखर सब समा गए सियासतदानों
के पेट में दोस्त।
काट डाले दरख्तों के शामियाने ये बंजर शहर दिखता है।
मुद्दतों से तलाशता रहा अमन चैन आदमी
के लिए।
आज भी आदमी सहमा सहमा दर बदर
दिखता है।
सड़क धँसना चाहती है छुपाने को अक्स
अपना।
सरकारी हिफाजत में मुजरिमों की फौज
दिखती है।
अब संसद तो कोई शरीफ शायद जा नहीं
सकता।
अरे छोड़िए फर्जी सियासी उसूल टिकट खूब बिकती है।
रहनुमा को इतनी सुरक्षा नसीब क्यों हुई खौफ किससे है।
क्या अब ये वह नहीं जो चौखट पर घुटने के
बल खड़ा था।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१४.०५.२०२२ ०८.२८ पूर्वाह्न