संस्मरण- वीरान रहस्यमयी"भानगढ़ दुर्ग"

   

 वीरान रहस्यमयी भानगढ़ दुर्ग

      (संस्मरण/लेखक की यात्रा)

      

     हमारे भारत देश का एक विशिष्ट प्रांत राजस्थान वीरों की भूमि,राजाओं की भूमि, राणा की भूमि,जौहर की भूमि,इतिहास के पन्नों को अपने उर में संजोए भूमि इसी प्रदेश में स्थित है विश्वप्रसिद्ध अरावली पहाड़ियों की गगन चूमती चोटियां और इनकी पर्वतमाला के आंचल में दुनिया का रहस्यमयी वीरान भूतहा निर्जन शापित दुर्ग "भानगढ़" स्थित है।

     विश्व प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान की सीमा से सटा भानगढ़ दुर्ग अपनी दास्तां बयान करता हुआ द्रष्टिगत होता है वर्णन है अपने वनवास के दौरान पांडवों ने भी सरिस्का की शरण ली थी अर्थात

यहां पर वनवास का कुछ वक्त व्यतीत किया था जनश्रुतियों मान्यताओं के अनुसार यही पर महा बली भीम ने अपने परिवार के लिए निकलने हेतु अरावली पर्वत से मार्ग मांगा था लेकिन जब मार्ग ना मिल सका तब वीर भीम ने अपने वज्र समान गदा के प्रहार से विशाल पर्वत को चूर चूर करके उसके वक्ष में मार्ग बना दिया था जो अभी भी लोगों को अपनी ओर वर्बश खींच लाता है जो सरिस्का के आंचल में स्थित है।

     इसी अरावली पर्वत श्रंखला के आँचल में सरिस्का अभ्यारण्य की सीमा पर स्थित है रहस्यमयी भूतहा डरावना लेकिन निशब्द अनकही खामोशी की गिरफ्त में "भानगढ़ दुर्ग" चलो चलते हैं लेखक की यात्रा के साथ भानगढ़ किले की रहस्यमयी अबूझ पहेली को सुलझाने हेतु समझने हेतु यह किला निश्चित रूप से अतीत के दिनों में सामरिक दृष्टि से अविजित रहा होगा उजड़े बियावान जंगल के मध्य उजड़े महल,भवन, चौबारे,बाजार,मंदिर,छतरियां,द्वार,मुख्य द्वार सुरक्षा चौकी इसके वैभव की ओर जबरन आकर्षित करती है। कभी वेहद सम्रद्ध एव महत्वपूर्ण रहा होगा ये नगर एव यहाँ के निवासी ! फिर ऐसा क्या हुआ कि ये किला वीराने के आगोश में समाता चला गया कैसे? किसकी काली छाया पड़ गयी वैभवशाली दुर्ग पर कैसे ये निर्जन हुआ।

      भानगढ़ किले की इस वीरान,भूतहा, निर्जन होने की जब वजहें स्थानीय लोगों पर्यटकों किले के अंदर मौजूद ग्रामीणों से पूछी गयी तब लगभग सभी ने इस किले के बेहद डराबने खौफनाक मंजरों से रूबरू कराया कई स्थानीय लोगों ने सच बताने से परहेज किया। एक बुढ़िया जो बकरी चरा रही थी उसने बताया अभी भी रात्रि में नृत्य गायन की आबाजें सुनी जाती है विशेष कर अमावस की रात को जब सब ओर भयंकर अंधेरा होता है घनघोर स्याह अंधकार तब ये ध्वनि ज्यादा प्रबल हो जाती है। जैसे महल में कोई उत्सव जश्न का आयोजन किया गया हो मेरे अधिक और आग्रह पर उसने कहा कभी कभी बहुत रोने चीखने की भयावह ध्वनि दिल दिमाग को हिला के रख देती है भयंकर रुदन चीत्कार खौफनाक आवाजें ! कुछ तो है ? इस वीराने का तिलिस्म ! बुढ़िया ज्यादा बताने से परहेज करती हुई अपनी बकरियों के साथ जंगल के आगोश में समा गई उसकी ये बातें कितनी सच है कितनी नहीं कह नहीं सकते लेकिन इसे सिरे से खारिज करना भी इस ऐतिहासिक महत्व की धरोहर के अस्तित्व को नकारना होगा।

हमारे द्वारा किले के चप्पे चप्पे का मुआयना,भृमण किया गया एव बारीकी से रहस्य को समझने की कोशिश की गई।

दोपहर के लगभग डेढ़ बजे से साढ़े तीन बजे तक(१६.०५.२०२२) हम किले के प्रत्येक गुम्बद खंडहर मंदिरों,शयन कक्ष,राज दरबार,आंगन मुख्य द्वार जो अब खंडहर हो गए हैं का बारीकी से अवलोकन किया शेष नेस्तनाबूद होने की कगार पर हैं। साथ ही आग्रह जवाबदेह संरक्षण अभिकरण से इस किले को संरक्षित करने पर विचार करना चाहिए नहीं तो ये विरासत पूर्णरूपेण नष्ट हो जाएगी। दुनियां के भूतहा वीरान पर्यटन स्थलों में भानगढ़ दुर्ग भी अपना विशेष स्थान रखता है किले के अवलोकन काल में मुझे भी कुछ नकारात्मक ऊर्जा का अहसास हुआ या यूँ कहें माहौल की गिरफ्त में विचारों में भूतहा किला होने की वजह से ऐसा रहा हो या अबूझ रहस्य की पहेली का तोहफा ! मुझे लगा वह अपने वीराने होने की व्यथा शायद मुझसे कह रहा हो इसी बीच सहसा मेरे नाशापुटों में किसी सुगन्धित पदार्थ की खुशबू तैरती चली गयी मुझे लगा शायद कोई व्यक्ति इत्र लगाए होगा लेकिन ये मेरा भृम था मेरे निकट कोई आदमी न था वैसे भी कोई इस बीराने भूतहा किले में इत्र लगाकर क्यों आएगा। लेकिन मेरा सच मे इत्र की विशेष सुगन्ध से दीदार हुआ तो था! इसे सिरे से खारिज करना सम्भव नहीं ! इस घटना का कोई तो सम्बन्ध इस किले से जरूर होगा पुरातात्विक शोध पत्रों एव विभिन्न स्रोतों जन श्रुतियों को खंगालने के बाद इत्र की खुशबू से सामना हुआ पर्दा उठा, तब रौंगटे खड़े हो गए शायद राजकुमारी रत्नावती की रूह हमें देख रही थी हमने अनाधिकृत रूप से उनके शयनकक्ष में दोपहर में खलल डाल दिया था शायद ! मुझे विदित न था ये राजकुमारी रत्नावती का निजी कक्ष है मुझे इसकी जानकारी पड़ताल के बाद पता चली मेरा उद्देश्य प्रेत/रूह लोक का महिमामंडन करना बिल्कुल नहीं है और ना ही पूर्णरूपेण रूह के साम्राज्य अस्तित्व को नकारना भी नहीं ! होती हैं आत्माएं ? मेरा मकसद ना प्रचारित करना है ना सिरे से खारिज करना,लेकिन सच को नकारा भी नहीं जा सकता कुछ तिलिस्म तो है इससे पूरी तरह किनारा नहीं किया जा सकता।

   भारतीय पुरातत्व विभाग की शिलालेख भी इस बात की गवाही दे रही है कि कुछ तो रहस्य तिलिस्म अवश्य समेटे हुए है ये "भानगढ़ दुर्ग" शिलालेख पर अंकित है सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के उपरांत किले में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है शोधकर्ताओं/खबरनवीसों को स्वयं की जिम्मेदारी पर ही रात्रि प्रवेश की अनुमति दिया जाना सुनिश्चित किया गया है। कितने ही शोधकर्ता रूहलोक की रहस्यमयी दुनिया से पर्दा उठाने में असमर्थ से प्रतीत दिखे सटीक आकलन से कोसों दूर,रात्रि के वीराने में ये दुर्ग और ज्यादा भयानक और खौफ के आगोश में अठखेलियाँ करता प्रतीत होता है स्याह घनघोर सन्नाटा बहुत कुछ कहता है

किले से कोई पांच सौ मीटर दूरी पर टिकिट खिड़की है जहाँ पर एकाध कमर्चारी रहता है सुरक्षा अमला बहुत ही मामूली लेकिन परिसर में प्रवेश करते ही दाएं हाथ की तरफ एक प्राचीन मंदिर स्थापित है मंदिर में आदमकद देव प्रतिमा स्थापित है जो शक्ति साहस प्रदान करती दिखती है और पुजारी जी सेवारत।

       लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद शिलालेख पर दुर्ग का नक्शा खुदा हुआ लगा है जो किले की सम्रद्धि वैभव एव दशा दिशा बताता प्रतीत होता है मुझे लगा शायद नक्शा कह रहा हो जनाब देखिए समय की काली छाया कैसे इसे नेस्तनाबूद कर गयी बड़ी भीषण है समय की मार,जान गए महोदय।

       भानगढ़ के शापित होने एव वीरान होने की प्रचलित कथाओं से रूबरू होते हैं। भानगढ़ नगर सम्रद्धि से परिपूर्ण था सभी लोग आनन्द सुकून और समरसता से जीवन व्यतीत कर रहे थे यहां के राजा विद्धानों,ज्योतिषियों,विशेष योग्यता से परिपूर्ण लोगों का विशेष सम्मान करते थे ।इसकी जानकारी एक काले जादूगर(तांत्रिक)को हुई उसका मन हुआ क्यों ना इसी नगर में राजा के संरक्षण में सुकून से रहा जाए वह नगर में रहने लगा उसने अपना स्थान किले के ठीक सामने वाली पहाड़ी पर बनाया एक दिन वह अपनी झोपड़ीं के बाहर आकर अरावली की पहाड़ियों को निहार रहा था अचानक उसकी नजर महल के ऊपरी हिस्से में दासियों के साथ भृमण कर रही राजकुमारी रत्नावती पर पड़ी वह अप्रतिम सौंदर्य एव यौवन की देवी सदृश दिखती थी रूप इतना आकर्षक मोहक कि नजरों पर काबू पाना असंभव राज कुमारी रत्नावती यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी कहा जाता है राजकुमारी से ब्याह करने के लिए भारत के लगभग सभी राजा राजकुमार लालायित रहते उम्र थी लगभग सोलह से अठारह वर्ष कंचन सी दमकती काया उपमा से रहित,जादूगर राजकुमारी परआसक्त हो गया मोहित हो गया वह जबरदस्ती ब्याह करने में निशक्त था लेकिन उसने उसे पाने हेतु अपनी तंत्र विधा(जादुई विधा) का सहारा लेना उचित समझा वह किसी भी हद तक जाने हेतु सज्ज था।

    अब वह रोज अपने निवास से नयनों से राज कुमारी के सौंदर्य कंचन कमनीय काया का सुख लेने लगा उसकी सारी जादुई शक्ति अब सिर्फ राजकुमारी को अपनी बाहों में समाहित करने अपनी भार्या बनाने पर स्थिर हो गयी लेकिन वह जबरदस्ती तो उससे व्याह नहीं कर सकता था उसे पता था अगर इस दुस्साहस की भनक राजदरबार को लगी तो मौत निश्चित है लेकिन वह सतत प्रयत्नशील रहा उसका एकमात्र मकसद उद्देश्य राजकुमारी को किसी भी तरह पाना ही था। एक दिन बाजार में राजकुमारी की दासी इत्र खरीदने आयी जादूगर की नजर महल की एक एक हरकत पर रहती थी वह दासी को दूर से देखने लगा थोड़ी देर बाद दासी ने राजकुमारी रत्नावती के लिए एक बेहद सुगन्धित इत्र की शीशी खरीदी जादूगर ने उसी शीशी पर अपनी जादुई शक्ति को प्रवेश करा दिया अभिमंत्रित कर दिया उसे भान था अपनी जादुई सामर्थ्य का वह आश्वस्त था दासी ये इत्र राजकुमारी के केशुओं में वदन में अवश्य लगाएगी इधर दासी जैसे ही राजकुमारी के पास इत्र की शीशी लेकर उपस्थित हुई राजकुमारी को इत्र में जादूगर की हरकत का पता चल गया। उसने गुस्से में शीशी को अभिमंत्रित करके एक भारी शिलाखण्ड पर दे मारा शीशी खण्ड खण्ड होगयी इत्र जैसे ही शिला पर गिरा वह जादूगर की तरफ सरकने लगी चलने लगी राजकुमारी को समझते देर ना लगी कि जादूगर उसे अपनी सहचरी बनाने के लिए कितना आतुर था कितना गिर चुका था अगर मैं इसे अपने बदन पर लगा लेती तो निश्चित ही जादूगर की बांहों की दासी बन जाती। अब भारी शिला सरकती सरकती जादूगर की बाहों में समाने हेतु आतुर दिखी और उसने तांत्रिक को अपने आगोश में ले लिया सांसे उखड़ने लगीं तांत्रिक ने अपनी सांस छोड़ने से पहले राजकुमारी एव भानगढ़ को नेस्तानाबूद होने का शाप दे दिया और वह राजकुमारी के अप्रतिम सौंदर्य के सपने देखते हुए काल का ग्रास बन गया मौत के आगोश में समा गया।

    कहा जाता है उसकी मौत के कुछ दिनों के बाद भानगढ़ पर शत्रुओं ने चढ़ाई कर दी भयंकर रक्तपात हुआ लाशों के ढेर ही ढेर हो गए रत्नावती भी मौत के आगोश में समा गयी भानगढ़ वीरान निर्जन हो गया। शायद वही इत्र की महक अभी भी किले में अपना जादू बिखेर जाती है लोगों का कहना है एकतरफा प्यार में अपने प्राण गंवाने वाला जादूगर और राज कुमारी की रूह अभी भी किले में विचरण करती है ऐसा मानना है।

       एक और जनश्रुति के अनुसार एक तपस्वी

के शाप के कारण ये किला निर्जन और वीरान हुआ आइए संक्षिप्त में नजर डालते हैं।इसी जंगल में एक तपस्वी साधू रहते थे उनकी ख्याति सर्वत्र व्याप्त थी राजा ने साधू के आश्रम आकर अरावली की पहाड़ियों में किला बनाने की अनुमति मांगी तपस्वी ने सहर्ष हामीं भर दी लेकिन एक चेतावनी दी ! अगर किले की छाया मेरी तपस्थली/ध्यान स्थली पर पड़ी तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा निर्जन नेस्तनाबूद। राजा ने साधू से कहा भगवन हम आपके आदेशानुसार ही दुर्ग बनाएंगे राजा शायद राजमद में साधु की कही बात भूल गया किला परम् वैभवशाली अविजित बनकर तैयार हो गया और सभी आनंद के साथ रहने लगे हर ओर खुशहाली सम्पन्नता और स्नेह,लेकिन समय तो समय है समय की काली छाया किले में पड़ने वाली थी

शायद इसके बर्वाद होने का वक्त निकट था एक दिन किले की परछाई साधू के तपस्थल पर पड़ गयी उसके शाप के प्रभाव से किला एक ही रात्रि में बर्बाद हो गया सभी स्वाहा शेष बचे मात्र और मात्र मंदिर और देवालय जो आज भी भानगढ़ की वैभवशाली इतिहास को बयान करते हुए नजर आते हैं।ये लेख संस्मरण"लेखक की यात्रा"से लिया गया है।

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१८.०५.२०२२ ०१.४१पूर्वाह्न

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