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सकपकाता
दिल से कंपकंपाता,
सिपाहीराम थाने में घुसा,
घुसते ही पहरे पर संतरी मिल गया,
सिपाहीराम का मुखमंडल खिल गया,
उनका था निर्बल कृशकाय शरीर,
हांफते से दिखे अधीर,
उन्होंने जुहार की,
साहब से मिलने की गुहार की,
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पहरा ने कक्ष की तरफ इशारा किया,
फरियादी से किनारा किया,
धीमे धीमे झेंपता सिपाहीराम,
दफ्तर में घुस गया,
अदब की मुद्रा में,देखते ही झुक गया,
वह साहब के सम्मुख खड़े थे,
दो बार हुजूर सलाम के बाद भी,
दरोगा जी बेसुध पड़े थे,
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अधिकांशतःसरकारी कार्मिको के,
आंख कान तो बंद होते भी हैं!,
बहुत से ड्यूटी के वक्त सोते भी हैं!
सहसा तन्द्रा टूट गयी,
अबे कौन है कहते कहते,
हाथ में लगी नोटों की गड्डी छूट गयी,
आंखे हाथों से मींजते हुए,
कुछ खीझ खीझते हुए,
वक्त सवा एक रात्रि का रहा होगा,
देखकर बोले,
बोलिये क्या हुआ,
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साहब मार्ग में राहजनी हो गयी,
अरे कैसे कहाँ किस वक्त,
लगातार कई प्रश्न दागे,
उनका मन था शायद ये भागे,
लेकिन सिपाहीराम कच्चा न था,
उम्रदराज था बच्चा न था,
मेहनत मजदूरी करके कुछ रुपये कमाए थे,
दो गड्डियां कमाकर लाए थे,
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बदमाशों ने,
थाने के पास ही वारदात की है,
मेरी खून पसीने की पूंजी लूट ली है,
अच्छा इतना दुस्साहस,
दरोगा जी बोले,
इसके बाद का दृश्य अचंभित कर गया,
ये "क्या" सहसा !
चहलकदमी करता हुआ
लंबी लंबी डग भरता हुआ,
उन्हीं में से एक लुटेरा,
दाखिल हुआ,
साहब के दफ्तर,
सिपाहीराम चिल्लाया
यह यहां कहाँ से आया,
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यही तो था जिसने चक्कू
गले पर लगाया था,
दरोगा जी बोले क्या बकते हो
ये मेरा निजी सहायक है!
बुरे वक्त में यही तो
फल दायक है!
राह दिखाता है
मेहनत से कमाता है खिलाता है!
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औचक निरीक्षण पर,
रात्रि दौरे पर एसपी साहब आए,
सिपाहीराम को देखा मुस्कराए,
सहजता से बोले क्या बात है,
उसने वाक़या साहब के समक्ष रक्खा,
अब चोर और दरोगाजी हक्काबक्का,
अधीक्षक महोदय के हुकुम से,
जो हुआ,
अप्रत्याशित हुआ,
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तत्काल तलाशी ली गई,
रकम मिल गयी पाई पाई यथावत,
दरोगा जी मित्र के साथ आहत!
सिपाहीराम एसपी साहब के
चरणों पर गिर गया,
आपके रूप में भगवान मिल गया,
सिपाहीराम विदा हुआ
फिर जांच बैठी या नही !
कह नहीं सकते,
लेकिन इस तरह का गठजोड़!
खोल रहा है सिस्टम के जोड़!
मानवता शर्माती है,
जब ऐसे अकल्पनीय कारनामों,
प्रकरणों की खबर जनमानस तक आती है,
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जयहिन्द
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०५.०५.२०२२ ०९.५८ पूर्वाह्न