उसकी सेना रक्त में स्नान करती हुई विजय पताका लहराती हुई भारत की ओर बढ़ रही थी वह धन के अथाह मोह में साम्राज्य विस्तार हेतु तीव्रता से मानव शरीरों को रौंदता हुआ आगे बढ़ रहा था। शौर्यता,ज्ञान,बल,दर्शन से ओतप्रोत हमारी भूमि की ओर, उसका सामना हुआ पंजाब राज्य के महान योद्धा राजा पोरस से जिनका युद्ध कौशल किसी परिचय का मोहताज न था। वह झुकने का
नाम नहीं ले रहे थे रक्त की नदियां बह रहीं थीं विजय का पलड़ा किस ओर झुकेगा ये सुनिश्चित नही हो पा रहा था। सिकन्दर की सेना अस्तपस्त होती जा रही थी पचास सहस्त्र सेना के सम्मुख राजा पोरस की मात्र बीस सहस्त्र सेना अडिग खड़ी थी सिकन्दर की भारत विजय की कामना असफलता की ओर अग्रसर होती जा रही थी।
इसी बीच सिकन्दर को भयंकर ताप
(मियादी बुखार)ने जकड़ लिया औषधियों का असर अप्रभावी होता जा रहा था। वह अत्यधिक कष्ट और पीड़ा से बैचेन हो रहा था उसने अपने अंगरक्षकों को बुलाया और कहा नालायको तुम सब आनंद से भोजन ग्रहण कर रहे हो और मैं सिकन्दर महान विश्वविजेता यहां मृत्युशैया पर पड़ा हुआ हूँ। असाध्य रोग के आगोश में होने के बाद भी सिकन्दर का अहंकार झुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने आदेश जारी किया मेरे स्वस्थ होने तक किसी भी आदमी के मुंह मे निबाला ना जाने पाए और हाँ सुनो!
क्या तुम्हें इस भूमि पर एक सुयोग्य बैध भी नहीं मिल पा रहा है जाओ अतिशीघ्र किसी योग्य चिकित्सक का बंदोबस्त करो अन्यथा तुम सब मारे जाओगे। सेवक आज्ञा का अनुपालन करने हेतु निकल पड़े लेकिन नतीजा सिफर रहा। अचानक एक भद्र पुरुष सिकन्दर के शिविर की ओर आते दिखे।
सैनिकों ने पूछा- कौन हो
भद्र पुरुष बोले- बैध हूँ
सुना है सिकन्दर बीमार है असाध्य रोग से,
सैनिक बोला-सिकन्दर महान बीमार हैं,
सैनिक उन्हें सिकन्दर के समक्ष ले गये और उनका परिचय दिया
सिकन्दर बोला- तुम शत्रु राज्य के बैध हो मेरी जान बचाने में इतनी रुचि क्यों ले रहे हो बैध जी!
बैध जी बोले-बैध का धर्म रोगी का इलाज करना है वह चाहे शत्रु पक्ष का हो या स्वपक्ष का,
सिकन्दर अभी भी अहंकार में था मैं सिकन्दर महान हूँ।
बैध जी बोले- तुम मेरी नजर में एक रोगी हो सिर्फ रोगी केवल एक रोगी शरीर!इससे अधिक कुछ भी नहीं, व्याधि (रोग) के लिए क्या राजा क्या रंक सभी समान हैं इसके लिए,बीमारी किसी से खौफ नहीं खाती वह किसी से भेद
भाव नहीं करती।
सिकन्दर बोला- क्या मैं ठीक हो जाऊंगा
बैध जी बोले- अवश्य,लेकिन तुम्हें मेरे दिशा निर्देशों का पालन करना होगा कुछ परहेज करना होगा तुम पहले से कहीं अधिक स्वस्थ हो जाओगे बेशक तुमने हजारों बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया है। लेकिन तुम अभी एक बीमार शरीर हो इसलिए तुम्हें स्वस्थ करना मेरा परम् कर्तव्य है सिकन्दर भौचक रह गया भारत भूमि के दर्शन से सिद्धांतो से विचार सुनकर,कैसी विचित्र भूमि है ये,जहाँ रोगी शत्रु को भी स्वास्थ्य प्रदान करने का भाव रखते हैं लोग,उसके बाद युद्ध भूमि में परास्त करने का अद्भुत साहस और बाजुओं में बल का तालमेल भी भारत को समझ पाना शायद मेरे बुद्धि विवेक के वश की बात नहीं।
सिकन्दर बैध जी की देखरेख में शीघ्र ही स्वस्थ होने लगा एक दिन बैध जी ने कहा-अब मैं जाना चाहूंगा और स्वैछिक मृत्यु वरण का संकल्प पूर्ण करना चाहता हूँ,इससे पूर्व सिकन्दर ने बैध जी पूछा- क्या मैं मर जाता अगर आप इलाज नहीं करते,बैध जी ने कहा- नहीं अभी तुम्हें और जीवित रहना है लेकिन मैं तो कभी भी मरना नहीं चाहता सिकन्दर ने कहा-मैं मर जाऊं और ये दुनिया जिंदा रहे ऐसा नहीं हो सकता मैं सिकन्दर महान हूँ दुनिया का शानदार निडर विश्वविजेता शहंशाह !
बैध जी ने कहा- क्या तुम सच मे अमर होना चाहते हो,सिकन्दर बोला- बिल्कुल,मैं अमर नहीं होऊंगा तो कौन होगा.तो सुनो मैं तुम्हें अमरता प्रदान करा सकता हूं।बैध जी बोले, सिकन्दर बोला-बताइए बैध जी कैसे क्या उपाय है जल्दी फौरन,ठीक है तो सुनो बैध जी ने कहा- सुमेरु पर्वत के आंचल में अंधकार से पोषित एक गुफा है लेकिन उस गुफा में आज तक कोई जा नहीं सका है क्या तुम जा सकोगे।
सिकन्दर बोला-अवश्य जा सकूँगा तो सुनो बैध जी बोले-उस गुफा में काफी दूर चलने के बाद एक सरोवर मिलेगा तुम उसका पांच अंजुली भर जल पी लेना तुम अमर हो जाओगे और हां अब मैं विदा होना चाहूंगा बैध जी ने कहा- आगामी एकादशी को में मृत्यु को स्वतः वरण कर लूँगा इतना कह कर बैध जी अपने स्थान को लौट गए।
सिकन्दर बैध जी द्वारा बताए सरोवर के निकट पहुच गया उसे अमर होने की तीव्र अभिलाषा थी जैसे ही वह सरोवर से अंजुली भर जल पीने को हुआ। एक तीव्र ध्वनि उसके कानों को भेदती हुई प्रविष्ट हुई ,रुक जा सिकन्दर ये भूल मत करना।
उसने नजर फैला कर देखा सामने एक जीर्णशीर्ण अवस्था में पँखविहीन रुग्ण सा कौआ दिखा वह वेहद डरावना था।
सिकन्दर बोला- तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे रोकने की मैं सिकन्दर महान हूँ।
कौआ बोला- गलती मत कर बैठना सिकन्दर जल पीने की ! सिकन्दर बोला-क्यों
कौआ बोला-इसका पान करते ही तुम अमर हो जाओगे,सिकन्दर बोला- यही तो चाहिए मुझे,
तो ठीक है तुम खूब जल पियो कौआ बोला लेकिन उससे पहले तुम्हें मेरी एक इच्छा पूर्ण करनी होगी उसके बाद इस सरोवर की बेसुमार दौलत हीरे मोती सब तुम्हारे हो जाएगें और तुम अमर भी हो जाओगे।
सिकन्दर ने कहा- बताइए क्या करना है मुझे
कौआ बोला- बस मुझे मृत्यु दे दो मैं मरना चाहता हूँ मुझे इस रुग्ण शरीर से मुक्त कर दो।
सिकन्दर बोला- तुम अजीब पक्षी हो जो तुम मृत्यु चाहते हो और मैं अमर होना चाहता हूँ कौआ बोला- यही अमरता अभिशाप बन गयी है मेरे लिए मैं मरना चाहता हूँ मैं परेशान हो चुका हूँ इस रुग्ण शरीर से जिंदा रहते रहते मैं टूट चुका हूं सहस्त्रों वर्ष होगयीं जिंदा रहते रहते अब ये अभिशाप बन गयी है जिंदगी ! जिंदा रह रह कर मेरे सामने मेरे सभी परिजन पुरजन बांधव मर गए लेकिन मैं जीवित हूँ बड़ा अभागा हूँ मैं ! मुझे मृत्यु दे दो सिकन्दर ! तब तुम खूब जल पीना ये बूढ़ा शरीर रोज रोज मौत मांगता है लेकिन वह आती ही नहीं।
अमर होने का मोह मुझे बर्बाद कर गया मेरे सभी सगे सम्बन्धी मर गए लेकिन मुझे मृत्यु नहीं आयी सिकन्दर इस वेदना पीड़ा से मुक्ति दिला दे तू तो सिकन्दर महान है शहंशाह है !
कौआ बोला-ये जल शापित है ये अमरता तो देता है लेकिन चिर यौवन नहीं,शरीर का आनंद स्वस्थ रहने तक है अगर शरीर रुग्ण और असहाय है तब ऐसी अमरता, वैभवता,यश, बादशाहत का क्या महत्व ! सिकन्दर सुन जीवन और मृत्यु दोनों का होना अति आवश्यक है ये इस यात्रा के दो पहिये हैं मृत्यु और जीवन,और सुन अमरता अभिशाप है ! बाकी निर्णय तुम्हें करना है लेकिन पछतावा ही हाथ आएगा ये मेरा अनुभव है सोचना तुम्हें है।
तुम रुग्ण असहाय शरीर के साथ अमरत्व लेना चाहते हो या अपने स्वस्थ शरीर के साथ सानन्द मृत्यु के आगोश में जाना चाहोगे, सुन सिकन्दर मृत्यु जीवन का आरंभ है सुखद नूतन आरम्भ, सिकन्दर सारे तथ्यों से अवगत हो चुका था वह तत्काल उस गुफा से बाहर आ गया उसे अमरता और मृत्यु के बीच की यात्रा का अद्भुत ज्ञान मिल चुका था ये कहानी कितनी सच कितनी काल्पनिक है लेकिन है विशेष ज्ञान से भरी हुई।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०१.०६.२०२२ ०२.२५ पूर्वाह्न मध्यरात्रि
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