।।व्यंग्य।।
सच बोलो !
कितना सच बोलना चाहिए कितना नहीं एक बेहद उलझा हुआ प्रश्न है ! कितने ही दार्शनिक शिक्षाविद राजनीतिशास्त्र के पुरोधा इसका पैमाना सेट नहीं कर पाए कि कितना, किस समय, किससे सच बोलना है कितना नहीं !
चलिए छोड़िए पैमाना नाँपना,बहुत से लोग सच बोलते हैं और बहुत से सच नहीं बोलते,कारण है प्रगति में बाधा जेब में आवक का कम होना लेकिन जो बोलते हैं वे इन दोनों से अलग होते हैं उनके अंदर लोभ की लालच की ब्याधि शायद प्रविष्ट नही कर पाती या अलग दुनियां के होते है या दिगम्बर !
मुख्यमंत्री का पहले से निर्धारित दौरा शुरू होने को था विषय था सरकारी हॉस्पिटलों में रोगोपचार की व्यवस्था का हालचाल जानना,सूचना खबरनवीसों के द्वारा जन जन तक प्रसारित प्रचारित हो चुकी थी कल मुख्यमंत्री जी आ रहे हैं, चिकित्सालय का दौरा करने,खबर फैल चुकी थी।
राजकीय चिकित्सालय कलेक्टर महोदय पहुँचे देखते ही भिन्ना उठे ये क्या हॉस्पिटल के अंदर प्रदूषण का बोलबाला क्यों है। सीएमओ बोले- साहब अभी सब ठीक करा देते हैं,ठीक है कलेक्टर ने कहा,इसके बाद जैसे ही वह दूसरे कक्ष में गए गद्दों की चादरों की स्थिति साफसफाई की दशा बयान कर रही थी रोगियों के चेहरे कातर दृष्टि से देख रहे थे ये कौन भद्र पुरूष है जो इतना निष्ठावान और सजग है हम रोगियों के समुचित उपचार देखरेख हेतु!इसके बाद औषधी भंडारण का अवलोकन किया गया दबाइयाँ ना के बराबर थीं, पूछने पर पता चला कि जो नया नया फार्मासिस्ट आया है वह विधायक जी के साले की सिफारिश से पदासीन है वही है इन दबाइयाँ का तिया पांचा करने वाला है,कलेक्टर ने पूछा रौब से पूछा दबाइयाँ क्यों नहीं है इसी संवाद के दौरान सहसा एक रोगी दबाइयाँ थैली में लिए जाता दिखा..
कलेक्टर साहब- अरे इधर आओ
रोगी -जी साहब
कलेक्टर साहब-क्या है इस थैली में
रोगी-बाबू जी दबाइयाँ
कलेक्टर साहब-कहाँ से लाये हो
रोगी-बाहर से उस सामने वाली मेडीकल से
कलेक्टर साहब-हॉस्पिटल में दबाइयाँ नहीँ मिलती..
रोगी-बहुत कम
कलेक्टर साहब-तुम जाओ
अब कलेक्टर साहब और गुस्से में दिखे बोले सीएमओ साहब ये क्या चल रहा है आपके यहाँ.
सीएमओ-सब व्यवस्थित कर देगें कल तक
कलेक्टर साहब-मुझे सब व्यवस्थित चाहिए
सीएमओ-ओके सर
कलेक्टर साहब मातहतों को दिशा निर्देश देते हुए अपने दफ्तर लौट गए।
सुखपाल सुनिए-सीएमओ बोले
सुखपाल-जी साहब बताइए
सीएमओ-सुखपाल तुम्हें सब पता है कल एक दिन के लिए सब कुछ बेहतरीन होना चाहिए सब चकाचक इज्जत का सवाल है।
सुखपाल-जी साहब सब समझ गया सब ठीक हो जाएगा एक बात बताइए सर सीएम साहब कल कितने बजे तक आयेगें
सीएमओ-कोई बारह बजे तक,लेकिन तुम ये क्यों पूछ रहे हो
सुखपाल-ताकि समय से पहले सभी व्यवस्थित हो सके,
अच्छा-सीएमओ बोले
सीएमओ-अरे सुखपाल!तुम तो बस इधर के कायाकल्प पर ध्यान दो सीएम साहब को हम अपने हिसाब से ही यहाँ लाएंगे कुछ इधर उधर घुमाएंगे इधर दिखाएंगे उधर दिखाएंगे (वह अकेले तो भेष बदलकर आने से रहे इसके लिए जिगरा वाले जननेता चाहिए दिखाबे से दूर! वह अब दिया लिए फिरोगे तब कहीं शायद मिल सकें) तब इधर लाएंगे।
सुखपाल-ठीक है साहब,सब कुछ आपके अनुरूप हो जाएगा बस आपकी कृपा बनी रहे,सीएमओ साहब हँसते हुए बाहर निकल गए।
दबाइयाँ,साफ सफाई,गद्दे चादरे,रसोई,फल सब चकाचक कर दिए गए रोगियों को इतना बदलाव असहज कर रहा था या यूं कहें रास ही नहीं आ पा रहा था इतना साफ इतना प्रदूषण रहित वातावरण अरे वाह! निश्चित समय पर सीएम साहब का काफिला चिकित्सालय की ओर चल पड़ा मार्ग में पड़ रहे कूड़ाघरों को चमचमा के रख दिया गया था आंखों को धता बताता दिख रहा था सरकारी अमला!कहीं कहीं सड़क के इधर उधर कनात लगाईं गयी थीं कारण कहीं गंदगी अव्यवस्था पर मुख्यमंत्री जी की नजर ना पड़ जाए!सच कहें लेकिन सच कहना खतरनाक भी हो सकता है लेकिन कहे देता हूँ इस प्लान से क्या मुख्यमंत्री जी अवगत नहीं होगें क्या वे मुख्यमंत्री से पहले साधारण नागरिक नहीं हैं क्या उनका खुफिया तंत्र इतना निष्क्रिय है जो इन कारगुजारियों को नहीं समझ पाता सब समझ आता है लेकिन हाय री कुर्सी! काफिला को जानबूझ कर उसी मार्ग से लाया जा रहा था जिसका कायाकल्प अस्थायी
रूप से किया गया था।
काफिला चिकित्सालय में प्रवेश कर गया सीएम साहब के समक्ष सभी सजग और अनुशासित व्यवस्थित दिख रहे थे। निरीक्षन का क्रम चल पड़ा साफसफाई दबाई भोजन व्यवस्था ओढ़ने बिछाने के बस्त्र आदि आदि को देखते हुए मुख्यमंत्री जी बेहद खुश हुए अच्छा प्रबन्धन है। सीएमओ साहब से रूबरू होते हुए बोले आपके लिए विभाग कुछ अतिरिक्त करेगा बस इसी तरह चिकित्सकीय मापदंडों को पूर्ण करते रहो रोगियों को सभी मूलभूत सुविधाएं मिलती रहनी चाहिए।
इतना कह कर मुख्यमंत्री जी लौटने को उद्दत हुए तभी अचानक एक तीमारदार रोता हुआ प्रविष्ट हुआ सुरक्षाकर्मियों ने रोकने का प्रयास किया लेकिन मुख्यमंत्री जी की नजर उस पर पड़ गयी थी बोले आने दो इसे मेरे पास,सब हक्का बक्का हो गए कहीं ये किये कराए पर पानी ना फेर दे,हुआ भी वही जिसका डर था।
सीएम साहब-बताइए
तीमारदार-साहब मेरे बच्चे को बचा लो
सीएम साहब-क्या बात है बताइए
तीमारदार-हॉस्पिटल के अंदर दबाइयाँ नहीं मिलती मैं गरीब आदमी हूँ बाहर से ला नहीँ सकता
सीएम साहब-अरे दबाइयाँ तो स्टॉक में भरपूर हैं
तीमारदार-क्या दबाइयाँ आज ही आयी हैं
मुख्यमंत्री-क्या कह रहे हो आज ही!
तीमारदार-जी साहब हॉस्पिटल के अंदर दबाइयाँ हमेशा कम ही रहती हैं पर्चा दे दिया जाता है सामने से ले आइये तीमारदार ने सब कुछ सच सच मुख्यमंत्री जी को बता दिया यह भी कि ये चादरे फलां फलां टेंट से लाये गए हैं और यह भी यह सब आपके आने से चंद घण्टों पहले ही व्यवस्थित किया गया है। तीमारदार जागरूक नागरिक था उसने सभी कारगुजारियां मुख्यमंत्री जी के समक्ष रखीं और शांत हो गया उसने सच ही कहा था अक्षरसः सच!
कार्यवाही का आश्वासन देकर मुख्यमंत्री जी अपनी चमचमाती कार में सवार हुए उसके बाद फिर वही स्थिति वही ढपली वही राग/ या अपनी ढपली अपना राग!
शिव शंकर झा "शिव'
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.०६.२०२२ ०८.३५पूर्वाह्न