【1】
सच कह दूं या दूरियां बना कर रक्खूँ।
जुबान है बेजुबानों से कब तक रहोगे।
【2】
मशहूर होना कोई बड़ी बात नहीं होती।
मायने रखती है वजह "मशहूर"होने की।
【3】
चंद बातें उसकी उसे मशहूर कर गयीं।
कुछ पास आए बहुत को दूर कर गयीं।
【4】
जुबान की कीमत है बहुत वेशकीमत।
इसे फिजूल खर्ची से बचाना मेरे भाई।
【5】
फ़िजा ना बिगड़े बेवज़ह बदजुबानी से।
अपनों के साथ समझौता बुरी बात नहीं।
【6】
अल्फाज तकरीरें तौल कर बोलिये जनाब।
जरूर एकदिन सभी से वक्त मांगेगा हिसाब।
【7】
सेंकते रहे सियासी लोग मजहबी रोटियां।
भट्टियों की आग में जलता रहा बस बेगुनाह।
【8】
क़िताब खुद की ऐसी तो लिखो मेरे अजीज।
पन्नों की जुबां खुद तेरी शख्सियत बयाँ करे।
【9】
जिंदगी जिए और रुख़सत चुपके से हो गए।
अरे ये कोई बात हुई मालूम तो पड़ा नहीं।
【10】
एक बार बाजुओं को परख कर तो देखिए।
उफनती दरिया में"उतर"पार करके देखिए।
【11】
क्यों इतना गुमान करते हो खुद पर दोस्त।
ये ओहदा और जवानी सदा साथ नहीं देती।
【12】
सिर्फ हाँ हुजूरी में वक्त जाया ना कीजिए।
गलत कोई भी हो आवाज बुलंद कीजिए।
【13】
दरख़्त को अपनी ही शाखों से खौफ क्यों है।
ये बदलता दौर और आदमी खुदगर्ज क्यों है।
【14】
अपने साये से खुद ही महफूज नहीं दिखते।
वे पास तो हैं मगर साथ साथ नहीं दिखते।
【15】
दरिया खौफजदा है साहिल के कारनामों से।
एतबार दोनों ओर से कम हो रहा है दोस्तो।
【16】
बहुत खूब लगा लेते हो चेहरे पर नक़ाब।
कौन हो तुम क्या हो कुछ बोलिए ज़नाब।
शिव शंकर झा "शिव'
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१४.०६.२०२२ ०१.२३ पूर्वाह्न