गजल【समंदर से कह दो 】

 

 

गजल

समंदर से कह दो

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चिराग की जिद है ,रोशन जहां करूँगा।

आँधियों के सामने डटकर सफर करूँगा।


उनकी जिद है फ़क़त मुझको बुझाने की।

मेरी जिद है अंधेरों को रोशनी दिखाने की।

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आँधियों से शोलों से समंदर से कह दो।

पनाह की आदत नहीं सारे जहां से कह दो।


ओहदे की कुर्सी की ये सारी मेहरबानी है।

तुम्हें लगता है तुम खुदा हो कोरी कहानी है।

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कभी थे सियासत के फलक पर कुछ लोग।

हैसियत आज कितनी है जरा नजरें उठाइए।


किस्से जुबान पर थे सितारे आसमान पर थे।

जरा खोजिए उन्हें जो कभी ऊंचे मचान पर थे।

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उनको कहने दो,वे जो कुछ भी कहते हैं।

हमें पता है,वे बहुत बेबस बेसब्र रहते हैं।


वे चेहरों पर फ़रेबी नक़ाब लगा आये हैं।

बड़े बहरूपिये हैं चेहरा छुपा के आये हैं।

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कौन कहता है कि,वे दूध से धुले बैठे हैं।

सियासी जमात है,एक से एक बड़े बैठे हैं।


सुनो हमें उनकी अमीरी रास नहीं आती।

वे बहरे हैं उन्हें गरीब की सदा नहीं आती।

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चांद सूरज रोज बिखेरते है रोशनी यूँ हीं।

चलो इनको देखकर ही कुछ कदम चलते हैं।


आजकल फरेब का गठजोड़ खूब दिखता है।

रिश्तों में 'दरार" नकाबों का शोर दिखता है।

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फैसला तो वक्त की मुट्ठी में सिमटा है सुनो।

राह की दुश्वारियों को दोस्त जैसा मान लो।


आदमी की आदमी से अदाबत नहीं गयी।

उम्र कट गई मगर बेजा आदत नहीं गयी।

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१६.०६.२०२२ १२.५३ अपराह्न







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