कविता।।पिता तुम महान हो।।

  

कविता

।।पिता तुम महान हो।।


पिता की छत्रछाया में,सुनो जो पल रहे हैं।

सच मानिए वे नित बुलंदी चढ़ रहे हैं।

कर दिया जिनने पिता और माँ को बेघर।

एक दिन निश्चित मिलेगी चोट जम कर।


याद आते हैं बहुत वह दिन सुनहरे।

आपके सानिध्य में होते सुखद दिन रात मेरे।

अनुशासन,संस्कार,व्यवहार सब सिखला गए।

मार्गदर्शन में चले हम आपके मार्ग अपना पा गए।


पिता गगन की भांति क्षमतावान हैं,

पिता दिव्य हैं उच्च हैं महान हैं।

पिता दैवत्त्व का साकार रूप हैं,

पिता गुरू हैं ब्रह्म स्वरूप हैं।


पिता रक्षाकवच हैं छत्र हैं,

पिता मंद बयार सुगन्धित इत्र हैं।

पिता सन्तति के पालक हैं,

पिता पुत्र के सहगामी चालक हैं।


पिता सदा सहयोगी हैं,

पिता सरल हैं शांत हैं योगी हैं।

पिता पुत्र की ढाल हैं,

पिता गगन सदृश विशाल हैं।


पिता सत्य ज्ञान की पूंजी हैं,

पिता पुत्र के विकास की कुंजी हैं।

पिता जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है,

पिता के समान दूसरा कहाँ हो सकता है।


पिता देवालय की भांति पूज्यनीय हैं,

पिता ध्यान है ज्ञान हैं वंदनीय हैं।

पिता की गरिमा कौन गा सकता है,

वे समुन्द्र से गहरे हैं थाह कौन पा सकता है।


पिता सर्वांगीण विकास के आधार हैं,

पिता जीवन के मूल है तत्व हैं सार हैं।

पिता तप हैं जप हैं मंत्र हैं ध्यान हैं,

पिता ही जीवन हैं पुत्र की शान हैं।


पिता वाणी हैं मेधा हैं बल हैं,

पिता मधुर मधुर पावन जल हैं।

पिता सदैव सन्तान के हितचिंतक हैं,

पिता विशेष हैं अद्वितीय हैं शुभचिंतक हैं।


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१९.०६.२०२२ ०९.०८ अपराह्न




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