व्यंग्य (सरकार गिर गयी!)

 

।।व्यंग्य।।

सरकार गिर गयी !


सर,सरकार गिर रही है !

फोन पर सकपकाता हुआ,

डगमग पार्टी का अध्यक्ष बोला।

हाईकमान ने कहा क्या कहते हो,

हमारे नीचे से लंगोट कोई खींच ले गया।

और हमें पता ही नहीं चला? बहुत खूब !

ये सरासर गलत बात है अध्यक्ष जी।

तुम किस दुनिया में बने रहे,

सूँघने,सुनने की क्षमता से रहित।


जल्दी से जल्दी पता कीजिये,

इसके पीछे कौन है किसका हाथ है।

हाथ तो दिल्ली का है मगर अपना साथ है!

माननीय,वही है जो सरकारें गिरवाता है।

शतरंज का माहिर खिलाड़ी है,

कब किस मोहरे को किससे भिड़ाना है, 

ये दांव बहुत खूब अच्छी तरह आता है।

उसका सेंस गजब है।

असंभव को संभव कर जाना, 

उसकी आदत है।

अच्छा समझ आया वही है,

जिससे सियासी अदाबत है।


सरकार गिराने में अपना ही है सगा,

मगर हाथ उसका है तब ही किया है दगा।

इसकी हरकतें पहले से ही संदेहास्पद थी,

मगर तुम इसे दूध का धुला समझ बैठे थे।

नेता विधानदल बनाने में तुम्हारा हाथ था,

अब देखो कमाल सब कीचड़ हो गया।

आशय तो समझ रहे होगें आप !

सुनिए अध्यक्ष कान खोलकर सुनिए !

कुछ भी चालें चलो मोहरे लड़ाओ,

लेकिन सरकार गिरने से बचाओ।

इनकी महत्वकांक्षाऐं टटोलो,

नोटों के बंडल खोलो।

लालच दो,खरीद लो।


ये सब बिकाऊ हैं,

सबके सब खाऊ हैं।

लालच दिखाओ नोट उड़ाओ,

लेकिन सरकार गिरने से बचाओ।

इतना कह कर फोन काट दिया गया,

पार्टी अध्यक्ष भी कौनसा कम था।

बहुमत का गणित देखा,

सोचा,अब शायद सरकार बचेगी नहीं!

मन ही मन विचार किया, 

ये कौनसा मेरा सगा है।

चलो हम भी दल छोड़ देते हैं,

कुछ विधायक अपने साथ जोड़ लेते हैं।

और पार्टी अध्यक्ष भी बगावत कर गया।


दूसरी पार्टी से उसे ऑफर मिल चुका था,

खुला समर्थन कोई शर्त नहीं।

सरकार गिरा दो,ताकत दिखा दो।

ये सियासत है कोई किसी का सगा नहीं,

ऐसा कौन है यहाँ जिसने कोई ठगा नहीं।

बागियों को अपना मकसद बताईये,

कल तक सरकार अल्पमत में लाइये।

आपको सीएम बनने का ऑफर है,

सोचिए विचार कीजिये सुनहरा अवसर है।


चलो इकट्ठे हो जाओ सरकार गिरा दो,

उस पार्टी के समर्थन से सरकार बना लो।

विधायकों ने एक दूसरे को देखा,

अरे!अध्यक्ष जी तुम भी, 

अरे! हम क्यों नहीं?

हम भी तो तुम्हारे विरादर हैं।

क्या मेरी कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं है,

मेरे बाल सफेद हो गए पार्टी में रहते रहते। 

सिसक पड़े अध्यक्ष जी कहते कहते,

विपक्षी ने सीएम पद और दस केबिनेट

मंत्री बनाने का ऑफर दिया है।

हम सब पर परम् उपकार किया है।


और सुनो साथियो बिना शर्त समर्थन भी!

इसलिए तो उधर से इधर आया हूं।

आपका क्या मत है, 

विधायकों ने कहा अध्यक्ष जी 

हम आपके साथ हैं।

अध्यक्ष जी विपक्ष से कहिए,

सरकार से सदन में बहुमत सिद्ध कराए।

और कल ही सरकार गिराए,

विधायकों को गुप्त स्थान पर ले जाया जाए।


सरकार बहुमत सिद्ध नहीं कर पाएगी,

सरकार भरभरा कर धड़ाम से गिर जाएगी।

वाह!सियासी जमात बड़ा ही शातिर दिमाग!

दल बदला,झंडा बदला,लिबास बदला,

मगर खोपड़ी लोमड़ी सी नहीं बदला।

सरकार बहुमत से कोसों दूर हो गयी,

अपनों की बदौलत सरकार गिर गयी।

वाह!बहुत उम्दा सियासी दोस्ती,उसूल!  

जिस थाली में खाया उसी में छेद कर गयी।


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२३.०६.२०२२ ०७.०९पूर्वाह्न




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