सुख़न(शायरी)।।आईना सच कहे!।।

सुख़न(शायरी)

आईना सच कहे !


आओ मेरे दोस्त,दिल खोल कर आओ।

नकाब उतार कर आओ,जब पास आओ।


जैसे हो वैसे ही दिखो,तब शख्सियत मानें।

तुम छुपते बहुत हो,खुलेआम रहो तो जानें।


मग़रूर भी हैं वे,मशहूर भी हैं वे आजकल,

ये सियासत का नशा है,ज़रा देर से जाएगा।


रंग बदलते हो तुम रोज,गिरगिट की तरह,

होशियार हो मगर,नजर से बच नहीं पाते।


बड़े ही सलीके से चेहरे,छुपा के आये हो,

आदमी हो या कुछ देर,आदमी बन आये हो।


नज़र आ ही जायेगें,दाग तेरे चेहरे के सभी,

आईना है साहब,आपका गुलाम थोड़े ही है।


अक्स आईना है,हमारी तुम्हारी हरकतों का,

सुनो ये गुलाम नहीं,जो बात मुंह देखी कहे।


तुम्हें लगता है हम तुम्हें,देखते सुनते ही नहीं,

अरे!सब पता है दोस्त,तुम कितने शरीफ़ हो।


तुम शिकायत किससे करोगे,सुनेगा कौन,

हर ओर गिद्धों सी नजर है,नोंच डालेंगे तुम्हें।


मेरी आदत है खुले दिल से,गुफ़्तगू करने की,

तुम आज फिर क्यों,रंग बदल कर आए हो।


दामन पर दाग़ बहुत थे,उस शख़्स के दोस्त,

मगर सफेद लिबास में था,नजर नही आये।


जितना छुपाओगे अक्स,अपना आईने से,

जब सामने आओगे,सच दिखा देगा तुम्हें।


दिखाबे में वह,दिल के क़रीब बहुत था,

जब सच पता चला,तो जमीन सरक गयी।


दोस्त इस दौर दोस्त से,दिखते तो हैं बेशक,

वक़्त पर हथियार जो डाल दें,ऐसे बहुत हैं।


अपनी ताक़त शख्सियत,अपने आप बना,

तोहफ़े में मिली शोहरत,शायद रहे ना रहे।


चलो देख लें ईमान से,एकबार चेहरा अपना,

पता तो कर हीं लें,बेगुनाह हैं या गुनहगार।


हिसाब हर हरकत का,देना ही पड़ेगा तुम्हें,

जिसके बदौलत ज़िंदगी है,माँग लेगा हिसाब।


(सर्वाधिकार सुरक्षित.१७)

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२४.०६.२०२२ १२.४७ अपराह्न





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